छत्तीसगढ़ी बरवै छत्तीसगढ़ी अड़बड़, गुरतुर बोल । बोलव संगी जुरमिल, अंतस खोल ।। कहाँ आन ले कमतर, हवय मितान ।। अपने बोली-बतरस, हम गठियान ।। छोड़ चोचला अब तो, बन हुशियार । अपन गोठ हा अपने, हे कुशियार ।। पर के हा पर के हे, अपन न मान । अपने भाखा पढ़-लिख, हम गुठियान ।। अंग्रेजी मा फस के, हवस गुलाम । अपने भाखा बोलत, करलव काम ।।
पुस्तक परिचय: कविता रचना की कला
-
इस पुस्तक को क्यों पढ़े? कविता रचना की कला: शैली, तकनीक, और सृजन रमेश चौहान
द्वारा रचित एक अनुपम मार्गदर्शिका है, जो नवोदित कवियों को कविता की जादुई
दुनिया...
5 दिन पहले