पइसे के पाछू कभू, बइहा झन तो होव । चलय हमर परिवार हा, अतका धाने बोव । अतका धाने, बोव सबो झन, भूख मरी मत । पइसा पाछू, होके बइहा, हम अति करि मत ।। दुनिया ले तो, हमला जाना, नगरा जइसे । आखिर बेरा, काम न आवय, तोरे पइसे ।।
पुस्तक समीक्षा:शोधार्थियों के लिए बहुपयोगी प्रबंध काव्य “राजिम सार”-अजय
‘अमृतांशु’
-
मनीराम साहू मितान द्वारा सृजित “राजिम सार” छत्तीसगढ़ी छन्द प्रबंध काव्य
पढ़ने को मिला। छत्तीसगढ़ी में समय-समय पर प्रबंध काव्य लिखे जाते रहे है।
पंडित सुंदर...
3 हफ़्ते पहले