नवगीत चाल-चलन ला तोरे देखे मनखे होय म शक हे टंगिया के डर मा थर-थर काँपे धरती के रूख-राई कभू कान दे के सुने हवस रूख राई के करलाई टंगिया के मार सही के रूखवा के तन धक हे नदिया-नरवा रोवत रहिथे अपने मुँड़ ला ढांके मोरे कोरा सुन्ना काबर तीर-तार ला झांके मोर देह मा चिखला पाटे ओखर कुरिया झक हे मौनी बाबा जइसे पर्वत चुपे-चाप तो बइठे हे ओखर छाती कोदो दरत मनखे काबर अइठे हे फोड़ फटाका टोर रचाका ओखर छाती फक हे हवा घला हा तड़फत हावे करिया कुहरा मा फँस के कोने ओखर पीरा देखय करिया कुहरा मा धँस के पाप कोखरो भोगय कोनो ये कइसन के लक हे -रमेशकुमार सिंह चौहान
पुस्तक समीक्षा:शोधार्थियों के लिए बहुपयोगी प्रबंध काव्य “राजिम सार”-अजय
‘अमृतांशु’
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मनीराम साहू मितान द्वारा सृजित “राजिम सार” छत्तीसगढ़ी छन्द प्रबंध काव्य
पढ़ने को मिला। छत्तीसगढ़ी में समय-समय पर प्रबंध काव्य लिखे जाते रहे है।
पंडित सुंदर...
4 हफ़्ते पहले