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कतका झन देखे हें-

जवानी के जड़काला

जड़काला म जाड़ लगे, गरमी म लगे घाम । बाढ़े लइका मा लगय, मया प्रीत के खाम ।। मया प्रीत के खाम, उमर मा लागे आगी । उडहरिया गे भाग, छोर अपने घर के  पागी ।। सुनलव कहय रमेश, छोड़ पिक्‍चर के माला । मरजादा ला ओढ़, जवानी के जड़काला ।।

कइसे कहँव किसान ला भुइया के भगवान

कइसे कहँव किसान ला, भुइया के भगवान । लालच के आगी बरय, जेखर छतिया तान ।। जेखर छतिया तान, भरे लालच झांकत हे । खातू माटी डार, रोग हमला बांटत हे ।। खेत म पैरा बार, करे मनमानी जइसे । अपने भर ला देख, करत हे ओमन कइसे ।। घुरवा अउ कोठार बर, परिया राखँय छेक । अब घर बनगे हे इहाँ, थोकिन जाके देख ।। थोकिन जाके देख, खेत होगे चरिया-परिया । बचे कहाँ हे गाँव, बने अस एको तरिया ।। ना कोठा ना गाय, दूध ना एको चुरवा । पैरा बारय खेत, गाय ला फेकय घुरवा ।। नैतिक अउ तकनीक के, कर लौ संगी मेल । मनखे हवय समाज के, खुद ला तैं झन पेल ।। खुद ला तैं झन पेल, अकेल्‍ला के झन सोचव । रहव चार के बीच, समाजे ला झन नोचव । सुनलव कहय ’रमेश’, देश के येही रैतिक । सब बर तैं हर जीय, कहाथे येही नैतिक ।। -रमेश चौहान

सुरहोत्‍ती

सुरहोत्‍ती ये गॉंव के, हवय सरग ले नीक । मंदिर-मंदिर मा जले, रिगबिग दीया टीक ।। रिगबिग दीया टीक, खेत धनहा डोली मा । घुरवा अउ शमशान, बरत दीया टोली मा । सुनलव कहय रमेश, देख तैं चारों कोती । हवय सरग ले नीक, गॉंव के ये सुरहोत्‍ती ।।

तीजा तिहार

तीजा तीज तिहार मा, मांगे हें अहिवात । दिन भर रहे उपास अउ, जागे वो हा रात । जागे वो हा रात, खुशी पति के हे मांगे । पत्नी के ये काम, जगत मा ऊंपर टांगे । सुनलव कहे "रमेश", ठेठरी धर छोड़व पीजा । अपन ह अपने होय, कहत हे हमरे तीजा ।।

बेटी-बहू

बेटी-बहू बेटी हमरे आज के, बहू कोखरो काल । बहू गढ़य परिवार ला, राखय जोर सम्हाल ।। राखय जोर सम्हाल, बहू जइसे हे चिरई । तिनका-तिनका जोर, खोंधरा ओखर बनई ।। सास-ससुर मां बाप, मान राखय जी तुहरे । सुग्घर बहू कहाय, मान तब बेटी हमरे ।।

भागही ये कोरोना

 भागही ये कोरोना (कुण्‍डलियॉं) रहना दुरिहा देह ले, रहि के मन के तीर । कोरोना के काल मा, होये बिना अधीर ।। होय बिना अधीर, संग अपने ला दे ना । दू भाखा तैं बोल, अकेलापन ला ले ना ।। तोर हाथ मा फोन, अपन संगी ला कह ना । हवन संग मा तोर, अकेल्ला मत तैं रहना ।। कोरोना के रोग ले, होबो हम दू-चार । मन ला मन ले जोड़ के, रहिना हे तइयार ।। रहिना हे तइयार, हराना हे जब ओला । तन ले रहिके दूर, खोलबो मन के खोला अपने आप सम्हाल, नई हे हमला रोना । जुरमिल करव उपाय, भागही ये कोरोना ।।

छत्तीसगढ़ स्थापना दिवस

छत्तीसगढ़ स्थापना दिवस  माटी के संस्कार मा,सबला होवय नाज ।। हमर राज छत्तीसगढ़,  दिवस स्थापना आज । दिवस स्थापना आज,  बधाई गाड़ा-गाड़ा । बने रहय संस्कार, जेखरे ये हा माड़ा ।। अपने बोली बोल, धरव अपने परिपाटी । तोरे ये संस्कार, तोर आवय ये माटी ।। -रमेश चौहान

गैसटिक बर घरेलू नूसखा

थोकिन जाके देख

चित्र गुगल से साभार सरसी छंद दू पइसा मा मँहगा होगे, गउ माता हा आज । कुकरी-कुकरा संग बोकरा, करत हवय अब राज । कुण्डलियाँ घुरवा अउ कोठार बर, परिया राखँय छेक । अब घर बनगे हे इहाँ, थोकिन जाके देख ।। थोकिन जाके देख, खेत होगे चरिया-परिया । बचे कहाँ हे गाँव, बने अस एको तरिया ।। ना कोठा ना गाय, दूध ना एको चुरवा । पैरा बारय खेत, गाय ला फेकय घुरवा ।। -रमेश चौहान

सरकारी सम्मान

सरकारी सम्मान के, काला हे सम्मान । कोन नई जानत हवय, का येखर पहिचान । का येखर पहिचान, खुदे ला दे डारे हें । भाइ भतीजावाद, देख के निरवारे हें । बनय खुसामदखोर, तेखरे आथे पारी । अइसन के सम्मान, कहाथे गा सरकारी ।। -रमेश चौहान

हे गणपति गणराज प्रभु

हे गणपति गणराज प्रभु, हे गजबदन गणेश, श्रद्धा अउ विश्वास के, लाये भेंट ‘रमेश‘ ।। लाये भेंट ‘रमेश‘, पहिलि तोला परघावत । पाँव गिरे मुड-गोड़, अपन दुख दरद सुनावत । दुख मा फँसे ‘रमेश’, विनति सुनलव हे जगपति । विघ्न विनाशक आच, विघ्न मेटव हे गणपति ।।

गणित बनाये के नियम

गणित बनाये के नियम, धर लौ थोकिन ध्यान । जोड़ घटाना सीख के, गुणा भाग ला जान ।। गुणा भाग ला जान, गणित के प्राण बरोबर । एक संग जब देख, चिन्ह ला सबो सरोबर ।। कोष्टक पहिली खोल, फेर "का" जे...

दारुभठ्ठी बंद हो

दाई बहिनी गाँव के, पारत हे  गोहार । दारू भठ्ठी बंद हो, बचै हमर परिवार ।। बचै हमर परिवार, मंद मा मत बोहावय । लइका हमर जवान, इही मा झन बेचावय ।। जेखर सेती वोट, हमन दे हन गा भाई  । वादा...

अंगाकर रोटी

अंगाकर रोटी कड़क, सबला गजब मिठाय । घी-शक्कर के संग मा, सबला घात सुहाय ।। सबला घात सुहाय, ससनभर के सब खाथे । चटनी कूर अथान, संग मा घला सुहाथे ।। तहुँहर खाव ‘रमेश’, छोड़ के सब मसमोटी । जांगर करथे काम, खात अंगाकर रोटी ।। आघू पढ़व...

बेजाकब्जा

बेजाकब्जा हा हवय, बड़े समस्या यार । येहू एक प्रकार के, आवय भ्रष्चाचार ।। आवय भ्रष्टाचार,  जगह सरकारी घेरब । हाट बाट अउ खार,  दुवारी मा आँखी फेरब ।। सुनलव कहय रमेश, सोच के ढिल्ल...

आसों के जाड़

आसों के ये जाड़ मा, बाजत हावय दांत । सुरूर-सुरूर सुर्रा चलत, आगी घाम नगांत ।। आगी घाम नगांत, डोकरी दाई लइका । कका लमाये लात,  सुते ओधाये फइका ।। गुलगुल भजिया खात, गोरसी तापत हासों । कतका दिन के बाद, परस हे जाड़ा आसों ।। आघू पढ़व

सुघ्घर कहां मैं सबले

मैं सबले सुघ्घर हवंव,  तैं घिनहा बेकार । राजनीति के गोठ मा, मनखे होत बिमार । मनखे होत बिमार,  राजनेता ला सुनके । डारे माथा हाथ,  भीतरे भीतर  गुणके ।। सुनलव कहय रमेश, रोग अइसन कब...

फोकट मा झन बाँट

फोकट मा झन बाँट तैं, हमर चुने सरकार । देना हे ता काम दे, जेन हमर अधिकार ।। जेन हमर अधिकार,  तोर कर्तव्य कहाये । स्वाभिमान ला मार, सबो ला ढोर बनाये  ।। पैरा-भूसा डार, अपन बरदी मा ठोकत ।  लालच हमर जगाय, लोभ मा बाँटत फोकट ।। फोकट फोकट खाृय के, मनखे होत अलाल । स्वाभिमान हा मरत हे, काला होत मलाल ।। काला होत मलाल, निठल्ला हवय जवानी । काम-बुता ना हाथ, करत शेखी शैतानी । पइसा पावय चार, अपन जांगर ला झोकत । अइसे करव उपाय, बाँट मत अब कुछु फोकट ।। -रमेशकुमार सिंह चौहान

बोरे-बासी छोड़ के

बोरे-बासी छोड़ के, अदर-कचर तैं खात । दूध-दही ला छोड़ के, भठ्ठी कोती जात ।। भठ्ठी कोती जात, धरे चखना तैं बोजे । नो हय कभूू कभार, होत रहिथे ये रोजे । सुन तो अरे रमेश, काम ए सत्‍यानाशी । सुनस नहीं कुछ गोठ, खाय बर बोरे-बासी ।।

अंग्रेजी

अंग्रेजी के स्कूल हे, गली-गली मा आज । अइसन अतका स्कूल तो, रहिस न उन्खर राज । रहिस न उन्थर राज, चोचला ये भाषा मा । फँसे हवे सब आज, नौकरी के झासा मा । रोजगार के नाम, पढ़े लइका अंग्रेजी । तभो बेरोजगार, बढ़त हावे अंग्रेजी ।। -रमेशकुमार सिंह चौहान

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