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कतका झन देखे हें-

गावत हे फाग रे (घनाक्षरी छंद)

 गावत हे फाग रे (घनाक्षरी छंद) आमा मउराये जब, बउराये परसा हा,  भवरा हा मंडरा के, गावत हे फाग रे । झुमर-झुमर झूमे, चुमे गहुदे डारा ल, महर-महर करे, फूल के पराग रे ।। तन ला गुदगुदाये, अउ लुभाये मन ला  हिरदय म जागे हे, प्रीत अनुराग रे । ओ चिरई-चिरगुन, रूख-राई संग मिल, छेड़े हावे गुरतुर, मादर के राग रे ।। -रमेश चौहान

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