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कतका झन देखे हें-

सोच

हवय भोर अउ सांझ मा, एक सुरूज के जात । बेरा ऊये मा दिन चढ़य, बेरा बुड़े म रात । सुघ्घर घिनहा सोच हा, बसे हवे मन तोर । घिनहा घिनहा सोच के, जाथस तैं हा मात ।।

मया के रंग

खरे मझनिया जेठ के, सावन अस तो भाय । ठुड़गा ठुड़गा रूख घला, पुरवाही बरसाय ।। तोर मया के रंग ले, जब रंगे मन मोर । फांदा के चारा घला, मोला गजब मिठाय ।

लगे देश मा रोग

जब तक जागय न मनखे, सबकुछ हे बेकार । सबो नियम कानून अउ, चुने तोर सरकार । मांगय भर अधिकार ला, करम ल अपन भुलाय । । लोक लाज ला छोड़ के, छोड़े हे संस्कार ।। धरे कटोरा हे खड़े, एक गोड़ मा लोग । फोकट मा सब बांटही, दुनिया के हर भोग । हमर देश सरकार हे, फोकट हा अधिकार । खास आम के सोच ले, लगे देश मा रोग ।।

परय पीठ मा लोर

मुॅह बांधे रहिके ददा, चीज रखे हे जोर । जोर जोर पइली पसर, कोठी राखे घोर ।। घोर घोर जब बेटवा, थुक मा लाडू बांध । मांगे बाटा बाप ले, परय पीठ मा लोर ।।

केत

बहरा भर्री बन जथे, परता रहे म खेत। खेत खार बर कोढि़या, बन जाथे गा केत ।। केत एक अउ दारू हे, जेन रखय गा पेर । पेर पेर हमला रखय, दारू कोढि़या नेत ।

बेचे रिश्ता रोज

घर घर मा दुकान हवे, बेचे रिश्ता रोज । रोज खरीदे कोन हा, कर लव एखर खोज ।। खोज कोन हा टोरथे, तोरे घर परिवार । लालच मा जे आय के, देथे पैरा बोज ।।

सही म ओही रोठ

लाठी जेखर हाथ मा, लहिथे ओखर गोठ । गोठ होय बदरा भले, पर मानय सब पोठ ।। पोठ गोठ लदकाय हे, बोल सके ना बोल । बोल पोठ जे बोलथे, सही म ओही रोठ ।।

मनखे मनखे बाज

राजनीति के डोर मा, मनखे मन छंदाय । मनखे होगे जानवर, मनखेपन नंदाय ।। जात धरम हा मांस हे, मनखे मनखे बाज । आघू पाके मांस ला, चिथ चिथ के सब खाय ।। -रमेश चौहान

सिंहावलोकनी दोहा मुक्तक

बड़े आदमी कोन हे, सोचे के हे बात । बात धरे हे एक झन, एक सुने बिन जात । जात एक रद्दा अपन, दूसर अंते जाय । जाय नही अइसन डहर, मनखे जेन बनात । छत्तीसगढ़ी बोल हे, बोरे-बासी भात । भात हमन ला घात हे, हमर पेट भर जात ।। जात जात के खाव मत, तोर पिराही पेट । पेट भरे बर सोच मत, खा ले बासी भात ।।

झूमरत गावय फाग

परसा फूले खार मा, आमा मउरे बाग । देखत झूमय कोयली, छेड़े बसंत राग ।। महुॅवा माते राग मा, नाचय सरसो फूल । मनखे मनखे गांव मा, झूमरत गावय फाग ।।

चाह करे मा राह हे

हाथ गोड़ सब मारथे, रखे जिये के चाह । चाह करे मा राह हे, ले नदिया के थाह ।। थाह हार के हे कहां, जब मन जावय हार । हार हारथे चाह ले, चाहत मेटय दाह ।।

आवय हमला लाज

मनखे मनखे जोर लव, अपने दिल के साज । साज बाज अइसे गढ़व, होवय सबके काज ।। काज एक जुरमिल करव, गढ़व देश के मान । मान जाय मा देश के, आवय हमला लाज ।

नारी ले घर परिवार हे

//दोहा मुक्तक// 1. बड़ आंगा-भारू लगय, मनखे के संसार । पहिली नर भारी लगिन, अब तो लगथे नार ।। जेन सुवारी हा कहय, होथे ओही काम । जावर जीयर संग मा,बइठे अलगे डार । 2. बरगद हा छतनार हे, डारा पाना संग । गूॅथे माला फूल ले, मन मा भरे उमंग ।। लकड़ी गठरी पोठ हे, बंधे एके डोर । बसव एक परिवार मा, घोर मया के रंग ।। 3. नारी ले घर परिवार हे, नारी ले संसार । चाहे ओ उबार लय, के बोरय मझधार । नारी चाहय जोर लय, चाहय देवय टोर । बांध धरव ये गोठ ला, बेटी बहू हमार । 4. पोथी पतरा तैं पढ़े, पढ़े नही संस्कार । बने बनय कइसे तुहर, सास ससुर ससुरार ।। लइका बच्चा अउ धनी, अतके मा भूलाय । अइसन मा कइसे भला, बनही घर परिवार ।। 5. अलग अलग हे अंगरी, एक हाथ के तोर । तभो तोर ओ हाथ हे, राखे का तैं टोर ।। गुण अवगुण सब मा भरे, देखव सोच विचार । काबर मइके मा हवस, अपन धनी ला छोड़ ।। 6. पथरा मा मूर्ति गढ़व, जइसे तोरे सोच । साज सजावट कर बने, माथा कलगी खोच ।। जन्मजात तो पाय हव, हुनर गढ़े के झार । छिनी हथौड़ी हाथ धर, धीरे धीरे टोच ।।

छत्तीसगढ़ी बोलबो

अपन मातृभाषा दिवस, विश्व मनाये आज । आज कसम लव एक ठन, हमन बचाबो लाज । छत्तीसगढ़ी बोलबो, लइका बच्चा संग । घर बाहिर सब जगह, करबो ऐमा काज ।।

देशप्रेम के पाठ हा

लागे लात के लत हवय, सुनय नही ओ बात । बात समझ मा आय ना, हवे जानवर जात । जात अपन सबले बड़े, जात पात के देश । देशप्रेम के पाठ हा, ओखर दिल न  समात ।।

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