चल चली खोर मा, बिहनिया भोर मा, गाँव के छोर मा, खेल हम खेलबो । मुबाइल छोड़ के, मन ला मरोड़ के, सबो ला जोड़ के, संग मा ढेलबो ।। चार झन संग मा, पचरंग रंग मा, खेल के ढंग मा, डंडा ल पेलबो । छू छू-छुवाल के, ओखरे चाल के, मन अपन पाल के, दाँव ला झेलबो ।। -रमेश चौहान
Protected: जरथुश्त्र: ईरान के महान् पैगम्बर और मज़द-उपासना के प्रवर्तक
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1 हफ़्ते पहले