कहां देवता हे इहां कोन जाने । न जाने दिखे ओ ह कोने प्रकारे ।। इहां देवता हा करे का बुता हे । सबो प्रश्न के तो जवाबे ददा हे ।। ददा मोरे ब्रम्हा देह मोरे बनाये । मुँहे डार कौरा ददा बिष्णु मोरे ।। शिवे होय के दोष ला मोर मांजे । ददा हा धरा के त्रिदेवा कहाये ।। कभू देख पाये न आँसू ल मोरे । मने मोर चाहे जऊने ददा दै ।। खुदे के मने ला ददा हा दबाये । जिये हे मरे हे ददा मोर सेती ।। भरे हाथ कोरा दिने रात मोला । खुदे संग खवाये धरे हाथ कौरा ।। खुदे पीठ चढ़ाये ददा होय घोड़ा । धरे हाथ संगी बने हे ददा हा ।।
पुस्तक समीक्षा:शोधार्थियों के लिए बहुपयोगी प्रबंध काव्य “राजिम सार”-अजय
‘अमृतांशु’
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मनीराम साहू मितान द्वारा सृजित “राजिम सार” छत्तीसगढ़ी छन्द प्रबंध काव्य
पढ़ने को मिला। छत्तीसगढ़ी में समय-समय पर प्रबंध काव्य लिखे जाते रहे है।
पंडित सुंदर...
4 हफ़्ते पहले