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कतका झन देखे हें-

ये हँसी ठिठोली

ये हँसी ठिठोली, गुरूतुर बोली, मोरे अंतस खोले । ये कारी आँखी, हावय साखी, मोरे अंतस डोले ।। जस चंदा टुकड़ा, तोरे मुखड़ा, मोरे पूरणमासी । मन कुहकत रहिथे, चहकत रहिथे, तोरे सुन-सुन हाँसी ।।

चल तरिया जाबो

चल तरिया जाबो, खूब नहाबो, तउड-तउड़ के संगी । खूब मजा पाबो, दम देखाबो, नो हय काम लफंगी ।। तउड़े ले होथे, काया पोठे, तबियत सुग्घर रहिथे । पाछू सुख पाथे, तउड़ नहाथे, आज झेल जे सहिथे ।। जब तरिया जाबे, संगी पाबे, चार बात बतियाबे । गोठ गोठियाबे, मया बढ़ाबे, पीरा अपन सुनाबे ।। दूसर के पीरा, सुनबे हीरा, मनखे बने कहाबे । घर छोड़ नहानी, करत सियानी, तरिया जभे नहाबे ।। हे लाख फायदा, देख कायदा, धरती बर तरिया के । धरती के पानी, धरे जवानी, बड़ झूमे छरिया के ।। पानी के केबल, वाटर लेबल, तरिया बने बनाथे । बाते ला मानव, ये गुण जानव, कहिदव तरिया भाथे ।।

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