मिलत हवय ना हमर गांव मा, अब बनिहार गा । कहँव कोन ला सुझत न कूछु हे, सब सुखियार गा ।। दिखय न अधिया लेवइया अब, धरय न रेगहा । अइसइ दिन मा हमर किसानी, बनय न थेगहा ।।
डुमन लाल ध्रुव की दो कवितायें
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जनजातीय गौरव पहाड़ की छाया मेंएक आदमी खड़ा हैउसके पैरों में जूते नहींपर
जमीन उसे पहचानती है।वह जंगल से बात करता हैबिना भाषा बदलेपेड़ उसकी चुप्पी को
समझते ह...
2 दिन पहले