देखत रद्दा तोर गा, आंखी गे पथराय। संझा आहूू तै कहे, अब ले नइ तो आय ।। अब ले नइ तो आय, तोर कोनो संदेशा । फरकत आंखी मोर, लगत मोला अंदेशा ।। होबे कोनो मेर, बने गदहा कस रेकत । पिये छकत ले दारू, परे होबे तै देखत ।।
पुस्तक समीक्षा:शोधार्थियों के लिए बहुपयोगी प्रबंध काव्य “राजिम सार”-अजय
‘अमृतांशु’
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मनीराम साहू मितान द्वारा सृजित “राजिम सार” छत्तीसगढ़ी छन्द प्रबंध काव्य
पढ़ने को मिला। छत्तीसगढ़ी में समय-समय पर प्रबंध काव्य लिखे जाते रहे है।
पंडित सुंदर...
1 हफ़्ते पहले