नई होय छोटे बड़े, जग के कोनो काम । जेमा जेखर लगे मन, ऊही ले लौ दाम ।। सक्कर चाही खीर बर, बासी बर गा नून । कदर हवय सबके अपन, माथा तै झन धून ।। निदा निन्द ले धान के, खातू माटी डार । पढ़ा लिखा लइका ल तै, जीनगी ले सवार।। महर महर चंदन करय, अपने बदन गलाय । आदमी ला कोन कहय , देव माथे चढ़ाय ।। सज्जन मनखे होत हे, जइसे होथे रूख । फूलय फरय दूसर बर, चाहे जावय सूख ।। जम्मो इंद्रिल करय बस, बगुला ह करे ध्यान । जेन करय काम अइसन, ओखर होवय मान ।।
पुस्तक समीक्षा:शोधार्थियों के लिए बहुपयोगी प्रबंध काव्य “राजिम सार”-अजय
‘अमृतांशु’
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मनीराम साहू मितान द्वारा सृजित “राजिम सार” छत्तीसगढ़ी छन्द प्रबंध काव्य
पढ़ने को मिला। छत्तीसगढ़ी में समय-समय पर प्रबंध काव्य लिखे जाते रहे है।
पंडित सुंदर...
1 हफ़्ते पहले