लुहुर तुहुर मोरे मन होगे,तोरे बर रुझवाये । तोरे मुच मुच हँसना गोरी, मोला गजब सुहाये। बैइही बरन मोला लागे, सुन सुन भाखा तोरे । मया घोरे बोली हा तोरे, चिरे करेजा मोरे । कारी कारी चुन्दी तोरे, बादर बन के छाये । झाकत तोरे मुखड़ा गोरी, मोला बड़ भरमाये । आँखी आँखी म मया बोरे, अँखिया बाण चलाये । घायल हिरणीया मन मोरे, तड़प तड़प मर जाये ।। मोरे मन हा अंतस तोरे, बुड़े मया के दहरा । लहर लहर कतका लहराये, तोर मया के लहरा ।। तोर मया मा मन हा रंगे, जइसे दूध म पानी । तैं हर मोरे मन के राजा, मैं हर तोरे रानी ।।
पुस्तक समीक्षा:शोधार्थियों के लिए बहुपयोगी प्रबंध काव्य “राजिम सार”-अजय
‘अमृतांशु’
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मनीराम साहू मितान द्वारा सृजित “राजिम सार” छत्तीसगढ़ी छन्द प्रबंध काव्य
पढ़ने को मिला। छत्तीसगढ़ी में समय-समय पर प्रबंध काव्य लिखे जाते रहे है।
पंडित सुंदर...
3 हफ़्ते पहले