(श्री गोपालदास नीरज की कविता‘‘जीवन नही मरा करता‘‘ से अभिप्रेरित) लुका-लुका के रोवइयामन, कान खोल के सुन लौ रे । फोकट-फोकट आँसु झरइया, बात मोर ये गुन लौ रे ।। हार-जीत सिक्का कस पहलू, राखे जीवन हर जोरे । एकोठन सपना के टूटे, मरय न जीवन हर तोरे ।। सपना आखिर कहिथें काला, थोकिन तो अब गुन लौ रे । आँसु सुते जस आँखी पुतरी, मन मा पलथे सुन लौ रे ।। टुटे नींद के जब ओ सपना, का बिगड़े हे तब भोरे । एकोठन सपना के टूटे, मरय न जीवन हर तोरे ।। काय गँवा जाथे दुनिया मा, जिल्द ल बदले जब पोथी । रतिहा के घोर अंधियारी, पहिरे जब घमहा धोती ।। कभू सिरावय ना बचपन हा, एक खिलौना के टोरे । एकोठन सपना के टूटे, मरय न जीवन हर तोरे ।। कुँआ पार मा कतका मरकी, घेरी-बेरी जब फूटे । डोंगा नदिया डूबत रहिथे, घाट-घठौंदा कब छूटे ।। डारा-पाना हा झरथे भर, घाम-झांझ कतको झोरे । एकोठन सपना के टूटे, मरय न जीवन हर तोरे ।। काहीं ना बिगड़य दर्पण के, जब कोनो मुँह ना देखे । धुर्रा रोके रूकय नहीं गा, कोखरोच रद्दा छेके ।। ममहावत रहिथे रूख-राई, भले फूल लव सब टोरे । एकोठन सपना के टूटे, मरय न जीवन हर तोरे ।...
मैं सिहावा हूं- श्रृंगी ऋषि की तपोभूमि और उनका सांस्कृतिक विरासत -श्रीमती
संध्या सुभाष मानिकपुरी
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मैं सिहावा हूं — महानदी का पवित्र उद्गम स्थल, सप्तश्रृंग पर्वतों की छाया
में बसा वह अद्भुत अंचल, जहां ऋषियों की गूंज अब भी हवा में बहती है। मेरी
पहचान…
3 दिन पहले