हर जात ले, हर धर्म ले, आघू खड़े, ये देश । हे मोर ले, अउ तोर ले, बड़का बड़े, ये देश ।। सम्मान कर, अभिमान कर, तैं भुला के, खुद क्लेष । ये मान ले, अउ जान ले, हे तोर तो, ये देश ।। विरोध करव, सरकार के, जनतंत्र मा, हे छूट । पर देश के, तै शत्रु बन, सम्मान ला, झन लूट ।। पहिचान हे, अभिमान हे, हमर सैनिक, हे वीर । अपन धरती, अउ देश बर, डटे रहिथे, धर धीर ।। -रमेश चौहान
पुस्तक परिचय: कविता रचना की कला
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इस पुस्तक को क्यों पढ़े? कविता रचना की कला: शैली, तकनीक, और सृजन रमेश चौहान
द्वारा रचित एक अनुपम मार्गदर्शिका है, जो नवोदित कवियों को कविता की जादुई
दुनिया...
2 दिन पहले