दोष देत सरकार ला, सब पिसत दांत हे । ओखर भीतर झाक तो, ओ बने जात हे । जनता देखय नही, खुद अपन दोष ला । अपन स्वार्थ मा तो परे, बांटथे रोष ला ।। वो लबरा हे कहूॅं, तैं सही होय हस ? गंगा जल अउ दूध ले, तैं कहां धोय हस ?? तैं सरकारी योजना, का सही पात हस ? होके तैं हर गौटिया, गरीब कहात हस ?? बेजाकब्जा छोड़ दे, तैं अपन गांव के । चरिया परिया छोड़ तैं, रूख पेड़ छांव के । लालच बिन तैं वोट कर, आदमी छांट के । नेता नौकर तोर हे, तैं राख हांक के ।।
Protected: जरथुश्त्र: ईरान के महान् पैगम्बर और मज़द-उपासना के प्रवर्तक
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6 दिन पहले