जापानी विधा । हाइकू, तांका, चोका । देश मा छाये ।। कोन हे इहां छंद के पूछईया । कोन बताये । ये मोर देश मोर अपने आय घात सुहाये । देश के माटी पुराना परिपाटी आज नंदाये । नवा लहर मचाये हे कहर जुन्ना ला खाये । कोन देखे हे मौसम बदले मा आने धरती । कोनो पेेड मा नवा पत्ती के आये नवा जर हे । टुकना तोपे कोन डोकरा राखे काला ये भाते ।
डुमन लाल ध्रुव की दो कवितायें
-
जनजातीय गौरव पहाड़ की छाया मेंएक आदमी खड़ा हैउसके पैरों में जूते नहींपर
जमीन उसे पहचानती है।वह जंगल से बात करता हैबिना भाषा बदलेपेड़ उसकी चुप्पी को
समझते ह...
10 घंटे पहले