दिखय न कोनो मेर, हवय के नाव बुतागे खोजव संगी मोर, कहां मनखे गंवागे ।। दिखय न कोनो मेर, हवय के नाव बुतागे खोजव संगी मोर, कहां मनखे गंवागे ।। जंगल झाड़ी खार, डोंगरी मा जा जाके । सहर सहर हर गांव, गीत ला गा गाके ।। इहां उहां अब खोज, मुड़ी हा मोर पिरागे । खोजव संगी मोर, कहां मनखे गंवागे ।। रद्दा म मिलय जेन, तीर ओखर जा जा के । करेंव मैं फरियाद, आंसु ला ढरा ढरा के । जेला मैं पूछेंव, ओखरे मति ह हरागे । खोजव संगी मोर, कहां मनखे गंवागे ।। गरीब गुरबा संग, रहय ओ मन ल लगा के । पोछय ओखर आॅसु, संगवारी अपन बना के अइसन हमर मितान, हमर ले घात रिसागे ।। खोजव संगी मोर, कहां मनखे गंवागे ।। ऊॅच-नीच के भेद, मिटाये मया जगा के । मेटे झगड़ा पंथ, खुदा ला एक बता के ।। ले मनखेपन संत, जगत ले कती हरागे । खोजव संगी मोर, कहां मनखे गंवागे ।। दरद मा दरद जान, रखय ओ अपन बनाके । हेरय पीरा बान, जेन हर हॅसा हॅसा के ।। ओखर ओ पहिचान, संग ओखरे सिरागे । खोजव संगी मोर, कहां मनखे गंवागे ।। दिखय न कोनो मेर, हवय के नाव बुतागे । खोजव संगी मोर, कहां मनखे गंवागे ।। खोजव संगी मोर, कहां मनखे गंवागे । ख