जस चश्मा के रंग होय । तइसे मनखे दंग होय भाटा कइसे हवय लाल । पड़े सोच मा खेमलाल चश्मा ला मन मा चढ़ाय । जग ला देखय हड़बड़ाय करिया करिया हवय झार । ओ हा कहय मन ला मार अपन सोच ले दुनिया देख । मनखे जग के करे लेख तोर मोर हे एक रंग । कहिथे जब तक रहय संग दुनिया हा तो हवय एक । दिखथे घिनहा कभू नेक दुनिया के हे अपन हाल । तोरे मन के अपन चाल दस अँगरी हे तोर हाथ । छोटे बड़े हवे एक साथ मुठ्ठी बनके रहय संग । काबर होथव तुमन तंग
मैं सिहावा हूं- श्रृंगी ऋषि की तपोभूमि और उनका सांस्कृतिक विरासत -श्रीमती
संध्या सुभाष मानिकपुरी
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मैं सिहावा हूं — महानदी का पवित्र उद्गम स्थल, सप्तश्रृंग पर्वतों की छाया
में बसा वह अद्भुत अंचल, जहां ऋषियों की गूंज अब भी हवा में बहती है। मेरी
पहचान…
3 दिन पहले