भृंग छंद नगण (111) 6 बार अंत म पताका (21)   चल न घर ग, बिफर मत न, चढ़त हवय दारू ।  कहत कहत, थकत हवय, लगत हवय भारू ।।  लहुट-पहुट, जतर-कतर, करत हवस आज ।  सुनत-सुनत, बकर-बकर, लगत हवय लाज ।।     
माँ, मिट्टी और मेहनत : रामेश्वर शर्मा की रचनाएँ
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ग़ज़ल जो जनहित में सृजन हो बस वही पुरनूर होता हैसृजक का लेख हो या गीत वह 
मशहूर होता है हक़ीक़त में अगर तुम प्यार करते हो सुनों यारोंजो दिल में प्यार 
बस जाए न फ...
1 दिन पहले
