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मई, 2016 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

कतका झन देखे हें-

.ये नोनी के दाई सुन तो

.ये नोनी के दाई सुन तो, ये नोनी के दाई सुन तो, ये बाबू के ददा बता ना, ये बाबू के ददा बता ना, ये नोनी के दाई सुन तो, बात कहंत हंव तोला । जब ले आये तैं जिनगी मा, पावन होगे चोला ।। तोर मया ले मन बउराये, जग के छोड़ झमेला । अंग अंग मा हवस समाये, जस छाये नर बेला ।। ये बाबू के ददा बता ना, गोठ मया मा बोरे । सुख दुख के मोर संगवारी, ये जिनगी हे तोरे ।। तन मन हा अब मोरे होगे, तोर मया के दासी । दुख पीरा सब संगे सहिबो, मन के छोड़ उदासी ।। ये नोनी के दाई सुन तो, ये नोनी के दाई सुन तो, ये बाबू के ददा बता ना, ये बाबू के ददा बता ना, ये नोनी के दाई सुन तो, दिल के धड़कन बोले । काली जइसे आज घला तैं, मन मंदिर मा डोले । जस जस दिनन पहावत जावय, मया घला हे बाढ़े । तन के मोह छोड़ मन बैरी, मया देह धर ठाढ़े ।। ये बाबू के ददा बता ना, काबर जले जमाना । मोर देह के तैं परछाई, नो हय ये हा हाना ।। तैं मोरे हर सॉस समाये, अंतस करे बसेरा । तोर मया के चढ के डोला, पहुॅचे हंव ये डेरा ।। ये नोनी के दाई सुन तो, ये नोनी के दाई सुन तो, ये बाबू के ददा बता ना, ये बाबू के ददा बता ना,

खेलत कूदत नाचत गावत (मत्तगयंद सवैया)

खेलत कूदत नाचत गावत (मत्तगयंद सवैया) खेलत कूदत नाचत गावत हाथ धरे लइका जब आये । जा तरिया नरवा परिया अउ खार गलीन म खेल भुलाये । खेलत खेलत वो लइका मन गोकुल के मन मोहन लागे । गांव जिहां लइका सब खेलय गोकुल धाम कहावन लागे ।

रखबे बात ल काढ़

ले मनखेपन सीख । नोनी देवय भीख  कोनो मरय न भूख । होय न भले रसूख उघरा के तन ढाक । नंगरा ल झन झाक भूखाये  बर  भात । रोवइया बर बात हमरे देश सिखाय । नोनी सुघर निभाय देखत बबा अघाय । दूनो हाथ लमाय देवय बने अशीष । दिल के रहव रहीस नोनी करय सवाल । काबर अइसन हाल मांगे काबर भीख । सुनके लागय बीख बबा हा गुनमुनाय । चेथी ला खजुवाय का नोनी ल बतांव । कइसे के समझांव मोरो  तो  घरद्वार । रहिस एक परिवार बेटा बहू हमार । हवय बड़ होशियार पढ़े लिखे जस भेड़ । हे खजूर कस पेड़ ओ बन सकय न छांव । छोड़ रखे अब गांव न अपन तीर बलाय । न मन मोर बहलाय जांगर मोर सिराय । कइसे देह कमाय करथे बवाल पेट । तभे धरे हंव प्लेट नोनी तैं हर बाढ़ । रखबे बात ल काढ़ जाबे जब ससुरार । धरबे बात हमार

सुरूज के आभा

नकल के माहिर ह, नकल करय जब, झूठ लबारी ह घला, कहा जथे असली । सोन पानी के चलन, होथे अब्बड़ भरम, चिन्हावय न असल, लगथे ग नकली ।। हीरा ह लदकाये हे, रेती के ओ कुड़ुवा मा, येला जाने हवे वोही, जेन होथे जौहरी । करिया बादर तोपे, सच के सुरूज जब, सुरूज के आभा दिखे, बादर के पौतरी ।

दरत हवय छाती मा कोदो

देश के बाहरी दुश्मन ले बड़े घर के भीतर के बैरी मन हे

दिखय ना कोनो मेर

"अपन अभिव्यक्ति के सुघ्घर मंच"

बाबू के ददा हा दरूहा होगे ओ

"अपन अभिव्यक्ति के सुघ्घर मंच"

एक रहव न यार

दाई हमर आय । जेखर हमन जाय छत्तीसगढ़ मोर । देखव सब निटोर हे जंगल पहाड़ । कइसन कइसन झाड़ नदिया नहर धार । धनहा अउ कछार काजर असन कोल । काहेक अनमोल हीरा धर खदान । बइठे हन नदान माटी म धनवान। छत्तीसगढ़ जान लूटे बर ग आय । रूप अपन बनाय झोला अपन खांध । आये रहिन बांध आके ग परदेष  । ओमन करत एष मालिक असन होय । मही हमर बिलोय घी ला कहय मोर । बाकी बचत तोर बासी महिर खाय । हमन रहन भुलाय उन्खर गजब षोर । हमला रखय टोर मोर सुनव पुकार । एक रहव न यार रख अपन पहिचान । मान अपन परान जब रहब हम एक । लगबो सुघर नेक करबो अपन राज । बैरी मन ल मार

पेट के पूजा

पेट बर जीना । मौत रोजीना पेट भर खाना । जी भर कमाना पेट के चिंता । करथे मुनिंता कहां ले पाबे । कइसे कमाबे जब जनम पाये । दाई पियाये दूध म अघाये । पिये बउराये थोरकुन बाढ़े । अॅंगना म माढ़े मुॅह ला जुठारे ।  दाई सवारे खाई खजेना । हाथ भर लेना ददा जब देथे । गोदी म लेथे लइका कहाये । खेल म भुलाये कई घा खाये । घूमत पहाये कभू ना सोचे । पेट भर नोचे काखर भरोसा । पांचे परोसा आये जवानी । परे हैरानी ददा अउ दाई । मांगे कमाई काम ला खोजे । दिन रात रोजे पर के सपेटा । खाये चपेटा तभे तो जाने । सब ल पहिचाने काम ले कोने । बड़े हे जोने जब घर बसाये । स्वामी कहाये दिन रात फेरे । जांगर ल पेरे पेट के सेती । करे तैं खेती परिवार पोशे । करम ना कोसे बेरा पहागे । जांगर सिरागे डोकरा खासे । छोकरा हासे बहू अउ बेटा । लगय गरकेटा पेट हे खाली । टूरा मवाली मरे के पारी । लोटा न थारी पेट के पूजा । करे ना दूजा

कहमुकरिया

1. जेखर आघू  मा मैं जाके । देखंव अपने रूप लजा के । अपने तन ला करके अर्पण । का सखि ? जोही ।़ नहि रे दर्पण । 2. जेखर खुषबू तन मन छाये । जेला पा के मन हरियाये । मगन करय ओ, जेखर रूआब का सखि ? जोही ।़ नहि रे गुलाब । 3. तोर मांग सब पूरा करहू। कहय जेन हा बिपत ल हरहू । कर न सकय कुछु, बने चहेता का सखि ? जोही ।़ नहि रे नेता ।

टूरा बहिया भूतहा, नई हवस कुछु काम के

नायक - गोदवाय हंव गोदना, गोरी तोरे नाम के । फूल बुटा बनवाय हंव, गोरी तोरे नाम के ।। नायिका- टूरा बहिया भूतहा, नई हवस कुछु काम के । खोर गिंजरा सेखिया, नई हवस कुछु काम के ।। नायक- तैं डारे हस मोहनी, मुखड़ा ला देखाय के । होगे तैं दिल जोगनी, दिल म मया जगाय के । तोर मया ला पाय बर, घूट पियें बदनाम  के । गोदवाय हंव गोदना, गोरी तोरे नाम के । नायिका- रूप रंग ला तैं अपन, दरपन धर के देख ले । आधा चुन्दी ठेकला, गाल दिखे हे पेच ले । कोने तोला भाय हे, फूल कहे गुलफाम के । टूरा बहिया भूतहा, नई हवस कुछु काम के । नायक- तोरे मुॅह ला देख के, चंदा लुकाय लाज मा । मुच मुच हॉसी तोर ओ, भगरे हे सब साज मा । तैं मोरे दिल मा बसे, जइसे राधा ष्याम के । गोदवाय हंव गोदना, गोरी तोरे नाम के । नायिका- काबर तैं घूमत हवस, पढ़ई लिखई छोड़ के । आथस काबर ये गली, अइसन नाता जोर के । धरे मया के भूत हे, तोला मोरे नाम के । टूरा बहिया भूतहा, नई हवस कुछु काम के ।

सोच

हवय भोर अउ सांझ मा, एक सुरूज के जात । बेरा ऊये मा दिन चढ़य, बेरा बुड़े म रात । सुघ्घर घिनहा सोच हा, बसे हवे मन तोर । घिनहा घिनहा सोच के, जाथस तैं हा मात ।।

मया के रंग

खरे मझनिया जेठ के, सावन अस तो भाय । ठुड़गा ठुड़गा रूख घला, पुरवाही बरसाय ।। तोर मया के रंग ले, जब रंगे मन मोर । फांदा के चारा घला, मोला गजब मिठाय ।

लगे देश मा रोग

जब तक जागय न मनखे, सबकुछ हे बेकार । सबो नियम कानून अउ, चुने तोर सरकार । मांगय भर अधिकार ला, करम ल अपन भुलाय । । लोक लाज ला छोड़ के, छोड़े हे संस्कार ।। धरे कटोरा हे खड़े, एक गोड़ मा लोग । फोकट मा सब बांटही, दुनिया के हर भोग । हमर देश सरकार हे, फोकट हा अधिकार । खास आम के सोच ले, लगे देश मा रोग ।।

परय पीठ मा लोर

मुॅह बांधे रहिके ददा, चीज रखे हे जोर । जोर जोर पइली पसर, कोठी राखे घोर ।। घोर घोर जब बेटवा, थुक मा लाडू बांध । मांगे बाटा बाप ले, परय पीठ मा लोर ।।

केत

बहरा भर्री बन जथे, परता रहे म खेत। खेत खार बर कोढि़या, बन जाथे गा केत ।। केत एक अउ दारू हे, जेन रखय गा पेर । पेर पेर हमला रखय, दारू कोढि़या नेत ।

बेचे रिश्ता रोज

घर घर मा दुकान हवे, बेचे रिश्ता रोज । रोज खरीदे कोन हा, कर लव एखर खोज ।। खोज कोन हा टोरथे, तोरे घर परिवार । लालच मा जे आय के, देथे पैरा बोज ।।

सही म ओही रोठ

लाठी जेखर हाथ मा, लहिथे ओखर गोठ । गोठ होय बदरा भले, पर मानय सब पोठ ।। पोठ गोठ लदकाय हे, बोल सके ना बोल । बोल पोठ जे बोलथे, सही म ओही रोठ ।।

मइके अचरा अब छोड़ दुलौरिन

मइके अचरा अब छोड़ दुलौरिन, तैं मन भीतर राख मया । अब हे अपने दुनिया गढना, भर ले मन मा सुख आस नवा ।। मइके घर हा पहुना अब तो ससुरार नवा घर द्धार हवे । बिटिया भल मानव ओ ससुरार म जीवन के रस धार हवे ।।

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