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संदेश

दिसंबर, 2015 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

कतका झन देखे हें-

नवा बछर

नवा बछर तिहार असन, बाॅटय खुशी हजार । ले लव ले लव तुम अपन, दूनों हाथ पसार ।। नवा नवा मा हे भरे, नवा खुशी के आश । छोड़ बात दुख के अपन, मन मा भर बिसवास ।। काली होगे काल के, ओखर बात बिसार । नवा बछर तिहार असन नवा बछर के आय ले, मिटही सब तकलीफ । जेन चोर बदमाश हे, बनही बने शरीफ । काम बुता जब हाथ मा, होही झारा झार । नवा बछर तिहार असन चमकत हे परकाश कस, नवा बछर हा घोर । अंधियार ला मेटही, धरे हवे अंजोर ।। मन मा धर बिसवास तै, अपने काम सवार । नवा बछर तिहार असन

पटक बैरी ला हटवारा मा

अमरबेल के नार बियार, कइसन छाये तोर डारा मा । अतका कइसे तैं निरबल होगे, नाचे ओखर इसारा मा । कुकरी  मछरी होके कइसे, फसगे ओखर चारा मा । दरूहा  कोडिहा  होके कइसे, अपन पगडी बेचे पै बारा मा । दूसर के हितवार्ती होके, भाई ला बिसारे बटवारा मा । तै मनखे हस के बइला भइसा, बंधे ओखर पछवारा मा । तै छत्तीसगढ़ीया बघवा के जाये, परे मत रह कोलिहा के पारा मा । जान पहिचान अपन आप ला, अपन मुॅह देख दरपण ढारा मा । ओखर ले तैं कमतर कहां हस, पटक बैरी ला हटवारा मा ।।

छोड़व छोड़व गौटिया

छोड़व छोड़व गौटिया, बेजाकब्जा धाक। गली खोर बन कोलकी, बस्ती राखे ढाक ।। काली के गाड़ी रवन, पयडगरी हे आज । कते करे ले आय अब, घर डेहरी सुराज ।। गाड़ी मोटर फटफटी, राखय कोने ताक । छोड़व छोड़व गौटिया चरिया परिया गांव के, नदिया नरवा झार । रोवत कहरत घात हे, बेजाकब्जा टार ।। कोन बचावय आज गा, तोर गांव के नाक । छोड़व छोड़व गौटिया चवरा राखे डेहरी, सोचे ना नुकसान । का तोरे ये मान हे, का तोरे ये शान ।। चक्कर दू आंगूर के, करे गांव ला खाक । छोड़व छोड़व गौटिया,

खनक खनक के हाथ मा

खनक खनक के हाथ मा, चूऱी बोले बोल । मोर मया के राज ला, जग मा देवय खोल ।। चूरी मोरे हाथ के, हवय तोर पहिचान । रूप सजाये मोर तो, देवय कतका मान ।। खनर खनर जब बोलथे, जियरा जाथे डोल  ।।खनक खनक के हाथ मा लाली हरियर अउ पियर, रंग रंग के रंग । सबो रंग मा तो दिखय,  केवल तोरे संग ।। तोर संग ला पाय के, हाथ बने बड़ बोल ।। खनक खनक के हाथ मा

छत्तीसगढी कविता के प्रतियोगिता

"छत्तीसगढी मंच" फेसबु समूह मा छत्तीसगढी कविता के प्रतियोगिता "छत्तीसगढ के पागा" के नाम ले चलत हवय । रचना प्रेमी संगी मन ये लिंक मा जाके ये समूह के सदस्य बन के पाठक या प्रतिभागी के रूप साहित्य के सेवा कर सकत हें ।   https://www.facebook.com/photo.php?fbid=523005337852382&set=gm.1005180262833929&type=3

महिना आगे पूस के

महिना आगे पूस के, दिन भर लागय जाड़ । हाथ-पाव हा कापथे,  जइसे डोले झाड़ ।। हू हू मुॅह हा तो करय, जइसे सिसरी बोल । परे जाड़ जब पूस के, मुक्का होजय ढोल ।। महिना आगे पूस के, लेही मोर परान । ना कदरी ना गोदरी, ना परछी रेगान ।। कांटा न झिटी गांव मा, दिखे न कोनो खार । कहय डहत ये पूस हा, अब तो भूरी बार । जानय ना धनवान हा, कइसे होथे पूस । कांपत हम बिन चेंदरा, ओ पहिरे हे ठूस ।।

छेरछेरा

आज छेरछेरा परब, दे कोठी के धान । अन्न दान ले ना बड़े, जग मा कोनो दान । जय हो दानी तोर ओ, करे खूब तैं दान । आज छेरछेरा परब, राखे ऐखर मान । दान करे मा धन बढ़य, जइसे बाढ़े धान । देवत हम आशीष हन, बने रहव धनवान ।। पायेंन बहुत दान हम, मालिक तोर दुवार । जीयव हजार साल तुम, आशीष लव हमार ।।

सरकारी स्कूल मा

हर सरकारी स्कूल मा, एक बात हे नेक । लइका मन कुछु करय, कोनो रखे न छेक ।। थारी लोटा ठोक के, लइका खेले खेल । गुरूजी गे हे सर्वे मा, होत कहां हे मेल ।। बाल देव भव हे लिखे, सबो स्कूल मा देख । भोग लगा पूजा करव, पथरा माथा टेक ।। पढ़ई लिखई छोड़ के, ले लव कुछु भी काम । गुरूजी हा ठलहा हवय, मास्टर ओखर नाम । बात करू हे लीम कस, कोनो दय ना ध्यान । नेता अउ सरकार हा, रखे कहां हे मान ।। हमरो गुरूजी मन घला, कहां सोचथे बात । लइका हा कइसे पढ़य, मेटय कइसे रात ।। तनखा अपन बढ़ाय बर, खूब करे हड़ताल । शिक्षा सुधरय सोच के, करे कभू पड़ताल ।।

मोर जवानी

घेरी घेरी ये ओढ़नी, कइसन सरकत जाय । कोन जनी का होय हे, मोला कुछु ना भाय ।। अपने तन हा गरू लगय, रेंगव जब मैं खोर । जेला देखव तेन हा, देखय आंखी फोर ।। सुन्ना होवय जब गली, रेंगब नई सुहाय । घेरी घेरी ये ओढ़नी सगली भतली खेल हा, लइका मन के खेल । पुतरा पुतरी संग अब, मन हा करे न मेल ।। संगी साथी छूट गे, नान्हे पन बिसराय । घेरी घेरी ये ओढ़नी हिरणी कस मन खोजथे, कूद कूद के घात । कइसन के ममहाय हे, आये समझ न बात ।। मोर जवानी आज तो, कस्तूरी बन आय । घेरी घेरी ये ओढ़नी

जब ले तोला पांय हव

जब ले तोला पांय हव, मया मरम जानेंव । जस जस बेरा हा बितय, अंतस मा लानेंव ।। काल परी कस तै रहे, आज घला हस हूर । दमक रहय तब चेहरा, आज घला हे नूर ।। हाड़ मास के का रखे, आत्मा ला जानेंव । जब ले तोला पांय हव सुख के संगी सब रहिन, दुख मा तैं अकेल । छोड़े जब संसार हा, तैं हर रखे सकेल ।। मया देह ले होय ना, आज बने जानेंव ।। जब ले तोला पांय हव एक दुसर बर हम हवन, जोर सांस के डोर । तोर जीनगी मोर हे, मोर जीनगी तोर । सातो फेरा के मरम, मैं हर पहिचानेंव । जब ले तोला पांय हव

गुरूवर घासी दास के

गुरूवर घासी दास के, अंतस धर संदेश । झूठ लबारी छोड़ के, सच सच बोल ‘रमेश‘ ।। सच सच बोल ‘रमेश‘, आच सच ला ना आये । मनखे मनखे एक, बात गुरू बबा बताये । जहर-महूरा दारू, जुवा चित्ती हे फासी । अइसन चक्कर छोड़, कहे हे गुरूवर घासी ।।

मुखिया

होथे जस दाई ददा, होवय मुखिया नेक । गांव  राज्य  या देश के, मुखिया मुखिया एक । मुखिया के हर काम के, एक लक्ष्य तो होय । रहय मातहत हा बने, कोनो झन तो रोय ।। काम बुता मुखिया करय, जइसे भइसा ढोय । अपने घर परिवार बर, सुख के बीजा बोय ।। घुरवा कस मुखिया बनय, सहय ओ सबो झेल । फेके डारे चीज के, करय कदर अउ मेल ।। सोच समझ मुखिया बनव, गांव होय के देश । मुखिया मुॅंह कस होत हे, जेन मेटथे क्लेश ।।

मुखिया

ये मुखिया के नाम मा, मुखिया के सब भाव । मुॅह होथे जस देह मा, मुखिया ओही ठांव ।। मुखिया ओही ठांव, जिहां तो सबो थिराये । कुकुर बिलइ अउ गाय, सबो ला एके भाये ।। सुन लव कहे ‘रमेश‘, रहय मत कोनो दुखिया । जर होथे जस पेड़, होय संगी ये मुखिया ।।

माई मुड़ी, माई मुड़ी, माई मुडी

माई मुड़ी, माई मुड़ी, माई मुडी माई मुडी ला होना चाही कइसन भात-बासी, दूध-दही सब खाथे-पीथे मुॅह हा, सबो अंग मा एक बराबर, ताकत जगाथे मुॅह हा। देह मा मुॅह हा होथे जइसन.... देह मा मुॅह हा होथे जइसन माई मुडी ला होना चाही वइसन । माई मुड़ी, माई मुड़ी, माई मुडी माई मुडी ला होना चाही कइसन डारा-पाना, फर-फूलवा सब रूखवा के हरिआये खातू-माटी, पानी-पल्लो, जब बने जर मा पाये रूखवा के जर हा होथे जइसन.... रूखवा के जर हा होथे जइसन माई मुडी ला होना चाही वइसन । माई मुड़ी, माई मुड़ी, माई मुडी माई मुडी ला होना चाही कइसन बघवा-भालू, साप-नेवला पानी पिये एक घाट मा गरीब-गुरबा, गौटिया-बड़हर एक लगे हे राम राज मा राजा मा राम हा होय हे जइसन... राजा मा राम हा होय हे जइसन माई मुडी ला होना चाही वइसन । माई मुड़ी, माई मुड़ी, माई मुडी माई मुडी ला होना चाही कइसन

आतंकी के धरम कहां होथे

मुक्तक बहर 222 212 1222 आतंकी के धरम कहां होथे । बहिया मन के करम कहां होथे ।। गोली मारव कुकर ल जब चाबय अइसन बेरा शरम कहां होथे ।। -रमेश चौहान

मनखे के बांटा

कांटा मा पांव परय के पांव मा परय कांटा चाहे तो डांट परय के गाल मा परय चांटा पथरा लोहा म करेजा के धधक कहां होथे पीरा अउ आंसु परय मनखे के रात दिन बांटा ।

अइसन शिक्षा नीति हे

अइसन शिक्षा नीति हे, नम्बर के सब खेल । नम्बर जादा लाय के, झेले लइका झेल ।। पढ़े लिखे ना ज्ञान बर, नम्बर के हे होड़ । अइसन सोच समाज के, बचपन लेवय तोड़ ।। पढ़े लिखे के बोझ मा, लदकाये हे जवान । पढ़े लिखे के नाम मा, कतका देवय जान ।। अव्वल आय के फेर मा, झेल सकय ना झेल । पढ़त पढ़त तो कई झन, करय मउत ले मेल ।। पढईया लइका सुनव, करहू मत तुम भूल । नम्बर  के ये फेर ला, देहूं झन तुम तूल ।।

दूसर के दरद मा रोना रोना होथे

आगी मा तिपे ले सोना सोना होथे । मन के सब मइल ला धोना धोना होथे । अपने के दरद मा जम्मा मनखे रोथे । दूसर के दरद मा रोना रोना होथे ।

अपन ददा के आज तै

तोरे सेती जेन हा, सहे रात दिन घाम । अपन ददा के आज तै, रखे डोकरा नाम । जर मा पानी छींच के, तोला झाड़ बनाय । पथरा मा मूरत असन, तोला जेन सजाय ।। आज ओखरे जीनगी, काबर हवे हराम । अपन ददा के आज तै... बर पीपर के छांव बन, देखे घर परिवार । खून छींच के आज तक, रखे जेन सम्हार । काम बुता ले ओखरे, सकला गे हे चाम ।। अपन ददा के आज तै... घूम घूम के खोज ले, ददे हे भगवान । ब्रम्हा कस ओ रचे, पाले बिष्णु समान ।। अइसन पालन हार के, कर सेवा के काम । अपन ददा के आज तै...

बैरी ला हम मारबो

फूॅक ले उड़ा जई अइसन धुररा नो हन । जाड़ मा जड़ा जई अइसन मुररा नो हन ।। हाथ मा कफन धरे बैरी ला हम मारबो । मौत ले डरा जई अइसन सुररा नो हन ।।

पढई ले का फायदा

पढई ले का फायदा, अउ का हे नुकसान । तउल तराजू देख ले, अनपढ अउ विद्वान ।। कुवर गोफरी कस कुवर, पढ़ के मनखे होय । आखर आखर बूॅद ले, अपन केरवछ धोय । विद्या ले आथे विनय, विनय बनाथे योग्य । योग्य बने धन आय हे, धन ले धरमी भोग्य । सही गलत के फैसला, करथे सोच विचार । दुनिया-दारी जान के, करथे सद् व्यवहार ।। शिक्षा के ये लक्ष्य हा, लगथे आज गवाय । पाये बर तो नौकरी, लोगन सबो पढ़ाय ।। जेला देखव तेन हा, कहय एक ठन बात । पढ़े लिखे मा काम के, मिलथे भल सौगात ।। काबर कोनो ना कहय, पाये बर संस्कार । नीत-रीत ला जान लय, लइका पढ़े हमार । पढ़े लिखे मनखे इहां, बिसराये संस्कार । अंग्रेजी के चोचला, चारो कोती झार । हिरदय मा धर हाथ तै, एक बार तो सोच । चलन घूस के देश मा, कइसे आये नोच । कोन अंगूठा छाप हा, काला दे हे घूस । पढ़े-लिखे बाबू मनन, पढ-लिख ले हे चूस । अपने दाई अउ ददा, करे निकाला कोन । पढ़े-लिखे ले पूछ ले, कइसे साधे मोन ।। खेत खार ला बेच के, जेला ददा पढ़ाय । साहब होके बेटवा, ओही ला भूलाय ।। पढ़े लिखे के चोचला, अपन रौब देखाय । पार्टी-सार्टी ओ करय, दारू-मंद बोहाय ।। पढ़े ल

धनी मया हा तोर

तन मन मा तो छाय हे, धनी मया हा तोर । मोर हाल ला देख के, मचे गांव मा शोर ।। महर महर करथे मया, चारो कोती छाय  । मोरे मन के हाल हा, छूपय नही छुपाय।। तोर मया बिन रात हे, होत नई हे भोर । तन मन मा ... आंखी खोजे रात दिन, चारो डहर निहार । मन फंसे आठो पहर, तोरे करत बिचार ।। निंद भूख लागय नही, आथे सपना घोर । तन मन मा ... ये दुनिया के बंधना, लागे हे जंजीर । तोर बिना बेकार हे, जिनगी मोरे हीर ।। तोर मया के छांव बर, रेंगव कोरे कोर । तन मन मा ...

दरुहा

का निरधन धनवान का, दारू पिये सब ठाठ । का कुरिया अउ का महल, का रद्दा अउ बाट ।। का सुख अउ दुख के बखत, का दिन अउ का रात । जेती पावव देख लव, बइठे चार जमात ।। दारु पिये ले आदमी, दरुहा नई कहाय । दारु पिये इंसान ला, तब दरुहा बन जाय ।। दरुहा होथे कुकुर अस, लहके जीभ लमाय । दारु पाय बर जेन हा, पूछी अपन हलाय ।। दारु पिये ओ कोलिहा, बघवा कस नरिआय । बघवा ले बधिया बनय, लद्दी मा धस जाय ।।

बिना काम के आदमी

लात परे जब पीठ मा, पीरा कमे जनाय । लात पेट मा जब परय, पीरा सहे न जाय ।। काम बुता ले हे बने, पूरा घर परिवार । काम छुटे मा हे लगे, अपने तन हा भार ।। लगे काम ला कोखरो, काबर तैं छोड़ाय । मारे बर तैं मार ले, अब कोने जीआय ।। काम बुता के नाम हा, जीवन इहां कहाय । बिना काम के आदमी, जीयत मा मर जाय ।।

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