आसों के ये जाड़ मा, बाजत हावय दांत । सुरूर-सुरूर सुर्रा चलत, आगी घाम नगांत ।। आगी घाम नगांत, डोकरी दाई लइका । कका लमाये लात, सुते ओधाये फइका ।। गुलगुल भजिया खात, गोरसी तापत हासों । कतका दिन के बाद, परस हे जाड़ा आसों ।। आघू पढ़व
पुस्तक समीक्षा:शोधार्थियों के लिए बहुपयोगी प्रबंध काव्य “राजिम सार”-अजय
‘अमृतांशु’
-
मनीराम साहू मितान द्वारा सृजित “राजिम सार” छत्तीसगढ़ी छन्द प्रबंध काव्य
पढ़ने को मिला। छत्तीसगढ़ी में समय-समय पर प्रबंध काव्य लिखे जाते रहे है।
पंडित सुंदर...
2 हफ़्ते पहले