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जुलाई, 2019 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

कतका झन देखे हें-

सावन

सावन तैं करिया बिलवा हस, तैं छलिया जस कृष्ण मुरारी । जोहत-जोहत रोवत हावँव, आत नई हस  मोर दुवारी ।। बूँद कहां तरिया नरवा कुछु बोर कुवाँ नल हे दुखियारी । बावत धान जरे धनहा अब रोय किसान धरे मुड़ भारी ।। पीयब धोब-नहावब के अब संकट ले बड़ संकट भारी । बोर अटावत खेत सुखावत ले कइसे अब जी बनवारी । आवव-आवव बादर सावन संकट जीवन मा बड़ भारी ।। देर कहूँ अब तैं करबे तब। जीयत बाचब ना जग झारी ।।

चलना खेले ला जाबो रे

चल ना रे खेले ला जाबो  । अबे मजा अब्बड़ के पाबो ।। का राखे ये मोबाइल मा । बइठे-बइठे  ये स्टाइल मा ।। नदिया जाबो तरिया जाबो । कूद-कूद के खूब नहाबो ।। रेसटीप हम डूबे-डूबे । बने खेलबो हमन ह खूबे ।। ढेस पोखरा खोज-खोज के । खाबो अब्बड़ रोज-रोज के ।। का राखे ये मोबाइल मा । बइठे-बइठे  ये स्टाइल मा ।। गिल्ली-डंडा चल धर ना बे । टोड़ी मारत पादी पाबे ।। खट-उल मा कोनो हा चलही । खेले बर जब मन ह मचलही ।। खोर-गली दइहान चली हम । लइकापन के डार चढ़ी हम ।। का राखे ये मोबाइल मा । बइठे-बइठे  ये स्टाइल मा ।।

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