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संदेश

कतका झन देखे हें-

मउसम के ये मार

मउसम के ये मार मा, मरत हन हम किसान । परे करा पाके चना, कइसे करी मितान ।। कइसे करी मितान, सुझत नइ हे कुछु हमला । कनिहा गे अब टूट, धरी कइसे हम दम ला ।। उत्तम लगे व्यपार , नौकरी लागय मध्यम । खेती लगय नीच, घात करथे जब मउसम ।।

पंगत

पंगत खाना के चलन, हो जाही का बंद। चलन रहिस परिवार के, जिहां छिड़े हे जंग ।। जिहां छिड़े हे जंग, संग देवय ना कोनो । पइसा हे परिवार, बफर स्टेटस के मोनो ।। नवा फेसन ‘रमेश्‍ा‘,  नवा लइका के संगत । कनिहा नवाय कोन, लगावय जेने पंगत ।।

नवा गढ़बो हम सपना

सपना देखा के बने, छेड़े काबर जंग । काबर बिहाव तै करे, दिल तोरे जब तंग ।। दिल तोरे जब तंग, भरम के नइये दवई । झगरा लड़ई रोज, बाढ़ गे तोरे पियई ।। सगली भतली खेल, समझ तै करे बचपना । जगा अपन विष्वास, नवा गढ़बो हम सपना।।

मुक्तक

देख देख के दूसर ला दांत ला निपोरत हन । बात आय अपने मुड़ अगास ला निटोरत हन ।। कोन संग देवय हमला आय बिपत भारी, आदमी बने आदमी ला देख गा अगोरत हन ।। -रमेश चौहान

देखय जनता हार

नगरी निकाय हा कहय, अपने ला लाचार। खुदे प्रस्ताव लाय के, खुदे कहय बेकार ।। खुदे कहय बेकार, बने सपना देखा के । आघू के वो शेर, करय का पाछु लुका के ।। होगे सालों साल, कहत भठ्ठी हा हटही । देखय जनता हार, जीत गे निकाय नगरी ।

गली मा करथे कचरा

कचरा फइले खोर मा, काला हे परवाह । खुंदत कचरत जात हे, आंखी मुंदे राह ।। आंखी मुंदे राह, जात हे जम्मो मनखे । नेता मन ला देत, दोश जम्मो झन तन के ।। गली करे बर साफ, परे ना कोनो पचरा । जान बूझ के फेक, गली मा करथे कचरा ।।

मन के ताकत

चित्र गुगल से साभार मन के ताकत होत हे, जग म सबले सजोर । मन बड़ चंचल होय गा, पहिली ऐला जोर ।। पहिली ऐला जोर, अंग पांचो रख काबू । जगा अपन विस्वास, फेर होही बड़ जादू ।। शेर बघवा पछाड़, जोश मा तै हर तन के । छुटे तोर जे काम, होय अब तोरे मन के ।।

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