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संदेश

कतका झन देखे हें-

बिहनिया के राम-राम

आज के बिहनिया सुग्घर, कहत हंव जय राम । बने तन मन रहय तोरे, बने तोरे काम । मया तोला पठोवत हंव, अपन गोठ म घोर । मया मोला घला चाही,  संगवारी तोर ।

हमर देश कइसन

हमर देश कइसन, सागर जइसन, सबो धरम मिलय जिहां । सुरूज असन बनके, मनखे तन के, गुण-अवगुण लिलय इहां । पर्वत कस ठाढ़े, जगह म माढ़े, गर्रा पानी सहिके । आक्रमणकारी, हमर दुवारी, रहिगे हमरे रहिके ।।

गाँव के हवा

रूसे धतुरा के रस गाँव के हवा म घुरे हे ओखर माथा फूट गे बेजाकब्जा के चक्कर मा येखर खेत-खार बेचागे दूसर के टक्कर मा एक-दूसर ल देख-देख अपने अपन म चुरे हे एको रेंगान पैठा मा कुकुर तक नई बइठय बिलई ल देख-देख मुसवा कइसन अइठय पैठा रेंगान सबके अपने कुरिया म बुड़े हे गाँव के पंच परमेश्वर कोंदा-बवुरा भैरा होगे राजनीति के रंग चढ़े ले रूख-राई ह घला भोगे न्याय हे कथा-कहिनी हकिकत म कहां फुरे हे

//छत्तीसगढ़ी माहिया//

तोर मया ला पाके मोर करेजा मा धड़कन  फेरे जागे तोर बिना रे जोही सुन्ना हे अँगना जिनगी के का होही देत मिले बर किरया मन मा तैं बइठे तैं हस कहां दूरिहा जिनगी के हर दुख मा ये मन ह थिराथे तोर मया के रूख मा सपना देखय आँखी तीर म मन मोरे जावंव खोले पाँखी

जब काल ह हाथ म बाण धरे

दुर्मिल सवैया जब काल ह हाथ म बाण धरे, त जवान सियान कहां गुनथे । झन झूमव शान गुमान म रे, सब राग म ओ अपने सुनथे ।। करलै कतको झगरा लड़ई, चिटको कुछु काम कहां बनथे । मन मूरख सोच भला अब तैं, फँस काल म कोन भला बचथे ।

अब तो हाथ हे तोरे

लिमवा कर या कर दे अमुवा अब तो हाथ हे तोरे मोर तन तमुरा, तैं तार तमुरा के करेजा मा धरे हंव मया‘, फर धतुरा के अपने नाम ल जपत रहिथव राधा-श्याम ला घोरे मोर मन के आशा विश्वास तोर मन के अमरबेल होगे पीयर-पीयर मोर मन अउ पीयर-पीयर मोर तन होगे मोर मया के आगी दधकत हे तोर मया ला जोरे तोर बहिया लहरावत हे जस नदिया के लहरा मछरी कस इतरावत हंव मैं, तोर मया के दहरा तोर देह के छाँव बन के मैं रेंगंव कोरे-कोरे

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