सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

संदेश

कुण्डली लेबल वाली पोस्ट दिखाई जा रही हैं

कतका झन देखे हें-

होय ओ कइसे ज्ञानी

ज्ञानी आखर के कभू, होथे कहां गुलाम । पढ़े-लिखे हर आदमी, होवय ना विद्वान ।। होवय ना विद्वान, रटे ले पोथी पतरा । साकुर करे विचार, धरे पोटारे कचरा ।। अपन सोच ल बिसार, पिये दूसर के पानी । पढ़े-लिखे के काम, होय ओ कइसे ज्ञानी ।।

लइका हा लइका रहय

लइका हा लइका रहय, कोन रखे हे ध्यान । बांधे हे छोटे-बड़े, लइकापन के मान ।। लइकापन के मान, हवय खेले कूदे मा । पढ़ई लिखई के नाम, बांध दे हें खूटा मा । पढ़ बाबू दिन-रात, बचा इज्जत के फइका । अव्वल तै हर आंव, कहे सब मोरे लइका ।।

करे बेहाल गांव ला

बेजाकब्जा हे करे, घेरे सबो चरिया । करे बेहाल गांव ला, छेके सबो परिया ।। छेके सबो परिया, गली रद्दा ला छेके । खुदे करे हे घाव, कहां पीरा ला देखे ।। जुन्ना घर ला बेच, सड़क मा बोथें रकजा । करथे गरब गुमान, करे ओ बेजाकब्जा ।।

दारू सुख-दुख के सेती

ऐती ओती जाय के, कोनो कोती देख । ऐला ओला जेन ला, रंग सबो के एक ।। रंग सबो के एक, नाम  दरूहा हे ओखर  । मान सम्मान दारू, दारू जिनगी हे जेखर ।। कइसनो रहय हाल, दारू सुख-दुख के सेती । कोलकी गली खार, देख ले ओती ऐती ।। -रमेश चौैहान

आत हे मानसून

झमा-झमा पानी गिरे, आत हे मानसून । जूड़ावत छाती हमर, मन गाये गुनगून ।। मन गाये गुनगून, देख के बदरी कारी । फुदक-फुदक हरसाय, चिरइ चिरगुन मतवारी ।। पुरवाही ह सुहाय, आय अब रूख म जवानी । लइका नाचय देख, गिरत झमा-झमा पानी ।।

परयावरण

चारोे कोती तोर रे, का का हे तै देख । धरती अगास पेड रूख, हवा पानी समेख ।। हवा पानी समेख, जेखरे ले जिनगी हे । ‘पंच-तत्व‘ हा आज, परयावरण कहाय हे । करव ऐखर बचाव, आय जिनगी के मोती । गंदगी ला बहार, साफ रख चारो कोती ।।

कतका तोरे सोर

मुॅंह तोरे बगराय हे, सबो डहर अंजोर । चारो कोती देख तो, कतका तोरे सोर ।। कतका तोरे सोर, लगय चंदा हा सिठ्ठा । गुुरतुर बोली तोेर, मीठ ले जादा मिठ्ठा ।। नसा घात छलकाय, अपन आंखी मा बोरे । बहिया तो बन जाय, जेेन देखय मुॅह तोरे ।।

फोकट फोकट मा

फोकट फोकट मा धरे, कौड़ी वाले लाख । छूट-लूट अनुदान बर, करे करेजा राख ।। करे करेजा राख, आत्म सम्मान भुलाये । मनखे खासो-आम, ठेकवा ला देखाये । अपात्र होगे पात्र, पात्र के होगे चौपट । कइसन चलत रिवाज, चाहथे सब तो फोकट।।

जुन्ना तोरे गोठ ला

जुन्ना तोरे गोठ ला, बांधे रह गठियाय । हमला का करना हवय, जेन हमला बताय ।। जेन हमला बताय, हवय ओ कतका मूरख । कोनो तो ना भाय, तभो देखावय सूरत ।। नवा जमाना देख, होय सुख सुविधा दून्ना । धरे रहिस तकलीफ, जमाना तोरे जुन्ना ।। -रमेेश चौेहान

गोठ करे हे पोठ रे

गोठ करे हे पोठ रे, संत कबीरा दास । आंखी रहिके अंधरा, देखे कहां उजास ।। देखे कहां उजास, अंधियारे हा भाथे । आंखी कान मूंद, जेन अपने ला गाथे ।। देखय ओ संसार, जेन जग छोड़ खड़े हे । परे जगत के फेर, आत्म के गोठ करे हे ।। -रमेश चौहान

माटी लोंदा आदमी

माटी लोंदा आदमी, गुरू हे जस कुम्हार । करसी मरकी जे मढ़य, ठोक-ठठा सम्हार ।। ठोक-ठठा सम्हार, गढ़य सुनार कस गहना । गुरू हे जस भगवान, संत मन के हे कहना ।। गोहार करे ‘रमेश‘, हवय गुरू के परिपाटी । रउंद ही गुरू पांव, होय मा कच्चा माटी ।।

आजा बादर झूम के

आजा बादर झूम के, हवय अगोरा तोर । खेत खार अउ अंगना, मया बंधना छोर ।। मया बंधना छोर, बरस रद-रद झर-झर के । धरती प्यासे घात, जुड़ावय ओ जी भर के ।। नाचही गा ‘रमेष‘, बजा के अपने बाजा । देखत हे सब निटोर, झूम केअब तै आजा ।

समय बावत के होगे

होगे किसान व्यस्त अब, असाढ़ आवत देख । कांटा-खूटी चतवार अउ, खातू-माटी फेक । खातू-माटी फेक, खेत ला बने बनावय । टपकत पानी देख, मने मन मा हरसावय ।। ‘ पागा बांध रमेश‘, बहुत अब तक तै सोगे । हवय करे बर काम, समय बावत के होगे ।।

पूछथें दाई माई

खाय हवस का साग तै, पूछ करय शुरूवात । आ हमरो घर बइठ लव, कहां तुमन या जात ।। कहां तुमन या जात, पूछथें दाई माई । आनी बानी गोठ, फेर फूटय जस लाई ।। घात खुले ये हार, नवा मंगाय हवस का । बने हे देह पान, जड़ी-बुटि खाय हवस का ।।

एक अकेला आय तै

एक अकेला आय तै, जाबे तै हर एक । का गवाय का पाय हस, ध्यान लगा के देख । ध्यान लगा के देख, करे काखर हस तै जै । मनखे चोला पाय, बने हस का मनखे तै ।। मनखेपन भगवान, जेन हा लगय झमेला । पूजे का भगवान, होय तै एक अकेला ।। -रमेश चौहान

रद्दा रेंगत जाव रे

रद्दा रेंगत जाव रे, रेंगे से हे काम । चाहे बाधा लाख रहय, कर झन तै आराम ।। कर झन तै आराम, मिलत ले अपने मंजिल । नदिया नरवा देख, टोर बाधा हे संदिल ।। चाटी चढ़य पहाड़, देख तो ओखर माद्दा। तै तो दिमागदार, छोड़थस काबर रद्दा ।। -रमेश चौहान

मया हंव मै तोर

डारा पाना डोल के, कहय हवा ले बात । मोरे डोले तै बहे, कहां तोर अवकात ।। कहां तोर अवकात, बिना मोरे का पुरवाही । रहंव जब खामोस, कोन तोला रे भाही ।। हवा पूछय मनात, चढे काबर हे पारा । मया हंव मै तोर, तहीं जोही अस डारा ।। -रमेश चौहान

जुन्ना पारा गांव के

जुन्ना पारा गांव के, धंधाय हवय आज । बेजाकब्जा के हवय, खोर गली मा राज ।। खोर गली मा राज, गांव के दुश्मन मन के । अपन गुजारा देख, गली छेके हे तन के ।। कहत हवे ग ‘रमेश‘, बात ला थोकिन गुन्ना । चातर कर दे खोर, नीक लगही गा जुन्ना ।।

सुरता झीरम कांड के

सुरता झीरम कांड के, ताजा होगे आज । जेमा हारे तो रहिन, लोकतंत्र के राज ।। लोकतंत्र के राज, शहीद होइन गा नेता । समय कठिन गे बीत, धरे मुठ्ठी मा रेता ।। ताजा हे वो घाव, बचे हे अब तक क्रुरता । कइसे होही नाश, जाय कइसे ओ सुरता ।।

कोन हा दुख ला सहिथे

कहिथे सब सरकार के, हवय न ऐमा दोष । जेन ल देखव तेन हा, उतारत हवे रोष।। उतारत हवे रोष, कहे ला करत नई हे । सपना के ओ गोठ, थोरको भरत नई हे ।। पूछत हवे ‘रमेश‘, कोन हा दुख ला सहिथे । सपना देखय जेन, सबो झन येही कहिथे ।।

मोर दूसर ब्लॉग