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कतका झन देखे हें-

राम कथा के सार

राम  कथा मनखे सुनय, धरय नहीं कुछु कान । करम राम कस करय नहि, मारत रहिथे शान ।। राम भरत के सुन कथा, कोने करय बिचार । भाई भाई होत हे, धन दौलत बेकार ।। दान करे हे राम हा, जीते लंका राज । बेजा कब्जा के इहाँ, काबर हे सम्राज ।। गौ माता के उद्धार बर,  जनम धरे हे राम । चरिया परिया छेक के,  मनखे करथे नाम ।। करम जगत मा सार हे, रामायण के काम । करम करत रावण बनव, चाहे बन जौ राम । नैतिक शिक्षा बिन पढे, सब शिक्षा बेकार । थोर बहुत तो मान ले, मनखे बन संसार ।। -रमेश चौहान

दाना-दाना अलहोर

अपन सबो संस्कार ला, मान अंध विश्वास । संस्कृति ला कुरीति कहे, मालिक बनके दास । पढ़े लिखे के चोचला, मान सके ना रीति । कहय ददा अढ़हा हवय, अउ संस्कार कुरीति ।। रीति रीति कुरीति हवय, का बाचे संस्कृति । साफ-साफ अंतर धरव , छोड़-छाड़ अपकृति ।। दाना-दाना अलहोर के, कचरा मन ला फेक । दाना कचरा संग मा, जात हवय का देख ।। धरे आड़ संस्कार के, जेन करे हे खेल । दोषी ओही हा हवय, संस्कृति काबर फेल ।। दोषी दोषी ला दण्ड दे, संस्कृति ला मत मार । काली के गलती हवय, आज ल भला उबार ।।

पढ़ई के नेह

होथे गा पढ़ई जिहां, काबर चूरे भात । पढ़ई लिखई छोड़ के, करे खाय के बात । बस्ता मा थारी हवय, लइका जाये स्कूल । गुरूजी के का काम हे, रंधवाय म मसगूल ।। मन हा तो काहीं रहय, बने रहय गा देह । बने रहय बस हाजरी, येही पढ़ई के नेह ।। अइसन शिक्षा नीति हे, काला हे परवाह । राजनीति के फेर मा, करत हें वाह-वाह ।। प्रायवेट वो स्कूल मा, कतका लूट-घसोट । गुरूजी हे पातर दुबर, कोन धरे हे नोट ।। करथें केवल चोचला, आन देश के देख । अपन देश के का हवय, पढ़व आन के लेख । हवय कमई जेखरे, पढ़ई म देत फूक । छोड़-छाड़ संस्कार ला, देखय केवल ‘लूक‘ । -रमेश चैहान

राग द्वेष ला छोड़ दे

राग द्वेष ला छोड़ दे, जेन नरक के राह । कोनो ला खुश देख के, मन मा मत भर आह ।। त्याग प्रेम के हे परख, करव प्रेम मा त्याग । स्वार्थ मोह के रंग ले, रंगव मत अनुराग ।। जनम जनम के पुण्य ले, पाये मनखे देह । करले ये जीवन सफल, मनखे ले कर नेह ।। अमर होय ना देह हा, अमर हवे बस जीव । करे करम जब देह हा, होय तभे संजीव ।। रोक छेक मन हा करय, पूरा करत मुराद । मजा मजा बस खोज के, करय बखत बरबाद ।।

बरसात

चढ़ बादर के पीठ मा, बरसत हवय असाढ़ । धरती के सिंगार हा, अब तो गे हे बाढ़ ।। रद-रद-रद बरसत हवय, घर कुरिया सम्हार । बांध झिपारी टांग दे, मारत हवय झिपार ।। चिखला हे तोरे गोड़ मा, धोके आना गोड़ । चिला फरा घर मा बने, खाव पालथी मोड़ ।। सिटिर सिटिर सावन करय, झिमिर झिमिर बरसात । हरियर लुगरा ला पहिर, धरती गे हे मात ।।

मान सियानी गोठ

झेल घाम बरसात ला, चमड़ी होगे पोठ । नाती ले कहिथे बबा, मान सियानी गोठ ।। चमक दमक ला देख के, बाबू झन तैं मात । चमक दमक धोखा हवय, मानव मोरे बात ।। मान अपन संस्कार ला, मान अपन परिवार । झूठ लबारी छोड़ के, अपने अंतस झार ।। मनखे अउ भगवान के, हवय एक ठन रीत । सबला तैं हर मोह ले, देके अपन पिरीत ।। बाबू मोरे बात मा, देबे तैं हर ध्यान । सोच समझ के हे कहत, तोरे अपन सियान ।। कहि दे छाती तान के, हम तोरे ले पोठ । चाहे कतको होय रे, कठिनाई हा रोठ ।।

रीत-नीत के दोहावली

जीयत भर खाये हवन, अपन देश के नून । छूटे बर कर्जा अपन, दांव लगाबो खून ।। जीवन चक्का जाम हे, डार हॅसी के तेल । सुख-दुख हे दिन रात कस, हॅसी-खुशी ले झेल ।। चल ना गोई खाय बर, चुर गे हे ना भात । रांधे हंव मैं मुनगा बरी, जेला तैं हा खात ।। महर महर ममहात हे, चुरे राहेर दार । खाव पेट भर भात जी, घीव दार मा डार ।। परोसीन हा पूछथे, रांधे हस का साग । हमर गांव के ये चलन, रखे मया ला पाग ।। दाई ढाकय मुड़ अपन, देखत अपने जेठ । धरे हवय संस्कार ला, हे देहाती ठेठ ।। खेती-पाती बीजहा, लेवव संगी काढ़ । करिया बादर छाय हे, आगे हवय असाढ़ ।। बइठे पानी तीर मा, टेर करय भिंदोल । अगन-मगन बरसात मा, बोलय अंतस खोल ।। बइला नांगर फांद के, जोतय किसान खेत । टुकना मा धर बीजहा,  बावत करय सचेत ।। मुंधरहा ले जाग के, जावय खेत किसान । हॅसी-खुशी बावत करत, छिछत हवय गा धान ।। झम झम बिजली हा करय, करिया बादर घूप । कारी चुन्दी बगराय हे, धरे परी के रूप ।। आज काल के छोकरा, एती तेती ताक । अपन गांव परिवार के, काट खाय हे नाक ।। मोरे बेटा कोढ़िया, घूमत मारय शान । काम-बुता के गोठ ला, एको धरय न कान ।। जानय न

चिंता होथे देख के

चिंता होथे देख के, टूटत घर परिवार । पढ़े लिखे पति पत्नि मन, झेल सहे ना भार ।। जानय ना कर्तव्य ला, चाही बस अधिकार । बात बात मा हो अलग, मेट डरे परिवार ।। मांग भरण पोषण अलग, नोनीमन बउराय । टूरा मन हा दारू पी, अपने देह नसाय ।। राम लखन के देश मा, रावण के भरमार । गली गली मा हे भरे, सूर्पनखा हूंकार ।। कहे कहां मंदोदरी, रावण, बन तैं राम । बात नई माने कहूं, जाहूं मयके धाम ।। सूर्पनखा ला देख के, राम कहे हे बात । बसे हवय मुड़ गोड़ ले, सीता के जज्बात ।। रोठ रोठ किताब पढ़े, राम कथा ला छोड़ । अपन सुवारथ मा जिये, अपने नाता तोड़ ।।

अपन करम ला सब करव

चारे मछरी के मरे, तरिया हा बस्साय । बने बने भीतर हवय, बात कोन पतियाय ।। सच ठाढ़े अपने ठउर, घूमय झूठ हजार । सच हा सच होथे सदा, झूठ सकय ना मार ।। बुरा बुरा तैं सोचथस, बुरा बुरा ला देख । बने घला तो हे इहां, खोजे मा अनलेख ।। अपन करम ला सब करव, देखव मत मिनमेख । देखे मा गलती दिखय, तोरे मा अनलेख ।। जइसे होथे सोच हा, तइसे होथे काम । स्वाभिमान राखे रहव, होही तोरे नाम ।।

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