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कतका झन देखे हें-

दू ठन मुक्तक

1 गजल शेर के घला नियम होथे । लिखे बोले मा जिहां संयम होथे ।। रदिफ काफिया बिना जाने कतको गजलकार के इहां नजम होथे । 2 मन के पीरा हरय कोन । ठउरे ओखर भरय कोन ।। वो हर चलदिस जगत छोड़ । रहि के जींदा मरय कोन ।।

मुक्तक

देख देख के दूसर ला दांत ला निपोरत हन । बात आय अपने मुड़ अगास ला निटोरत हन ।। कोन संग देवय हमला आय बिपत भारी, आदमी बने आदमी ला देख गा अगोरत हन ।। -रमेश चौहान

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