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कतका झन देखे हें-

गांव-गांव अब तो संगी होवत हे शहर

गांव-गांव अब तो संगी होवत हे शहर । पक्की-पक्की घर-कुरिया पक्की हे डगर ।। पारा-पारा आंगन-बाड़ी स्कूल गे हे सुधर । छोटे-बड़े नोनी-बाबू अब पढ़े हे हमर ।। मोटर-गाड़ी गांव मा घला हवय अड़बड़ । नवा-नवा रद्दा-बाट मा नवा हे सफर ।। हर हाथ मा मोबाइल दिखय सबो डहर हेलो-हेलो सुनय-कहय देवत-लेवत खबर ।। तोरी-मोरी लोग-बाग अब तो गे हें बिसर । अपन-अपन काम -बूता मा मगन हे चारो पहर ।। गली-खोर अब अंजोर हे अब रतिहा पहर । घर-घर बिजली बरे अउ चले हे चवर ।। आनी-बानी गाल मा पोते स्नो अउ पाउडर । टीप-टांप टुरी-टनकी गांव मा ढावत हे कहर ।। -रमेश चौहान

देत हस काबर कांटा

कांटा रद्दा के बिनय, पहिली हमर सियान । डहर चला बर डहर के, राखय पूरा ध्यान ।। राखय पूरा ध्यान, एक दूसर बस्ती मा । हर सुख दुख मा साथ, रहय सब्बो मस्ती मा। का होगे ग ‘रमेश‘, आज तै करे उचाटा । रद्दा परिया छेक, देत हस काबर कांटा ।।

फोकट मा

फोकट मा कुछु पाय बर, हे खड़े एक गोड़ । स्वाभिमान ला बेच के, बइठे माड़ी मोड़ ।। बइठे माड़ी मोड़, चहेटय आनी बानी । अपन आप ला बेच, करव मत ग सियानी ।। नेता अउ सरकार, नाक रगड़े हे चैखट मा । स्वाभिमान हे जान, झोक मत कुछु फोकट मा ।। -रमेश चौहान

सिपाही

जीना मरना देश बर, जेखर हे पहिचान । डटे सिपाही रात दिन, धरे हाथ मा जान ।। धरे हाथ मा जान, लड़य सीमा मा जाके । रखय देश मा शांति, जान अपने गंवाके । अमर होबे ‘रमेश‘, काम अइसन तै करना । जिनगी का हे यार, एक दिन जीना मरना ।।

रूखवा चिखय न फर अपन

रूखवा चिखय न फर अपन, फर मा जावय टूट । नदिया पानी ले भरे, पिये न एको घूट। पिये न एको घूट, गाय हर दूध ल अपने । धर मनखे के जात, कोन हर करे अइसने ।। सब जानथे ‘रमेश‘, मिले हे ऐमा दुखवा । सब झन खोजे छांव, बने ना कोनो रूखवा ।।

तिवरा भाजी

तिवरा भाजी रांध ओ, सुघ्घर भुंज बघार । हरियर मिरचा डार दे, बने रहय ना झार ।। बने रहय ना झार, बुरक दे धनिया पत्ती । अइसन भाजी भात, मिठाथे मोला अत्ती । तै अउ लाबे टोर, खेत मा लहसे भाजी । चुरकी रख बे जोर,सूखसा तिवरा भाजी ।।

चुनई

चुनई आगे गांव मा, मौका हे अदभूत । पंच बने बर गांव के, धरे महूॅं ला भूत । धरे महूॅं ला भूत, जीतना हे कइसनो । टूरा मन बर दारू, छोकरी मन बर इसनो लुगरा साटी बांट, छोड़ देना हे गुनई । रूपया पइसा बांट, जीत जाना हे चुनई ।।

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