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संदेश

कतका झन देखे हें-

सुत उठ के देख तो

सुत उठ के देख तो, बबा मांगय चाय । लइका मन अब ले सुते, देख बबा चिल्लाय ।। देख बबा चिल्लाय, कोडि़हा नाती नतुरा । दू आखर ला जान, कहे अपने ला चतुरा ।। उवत सुरूज ला देख, बेटवा झन तो तै रूठ । हवे फायदा घात, बिहनिया तै तो सुत उठ ।।

आंखी रहिके अंधरा

आंखी रहिके अंधरा, मनखे आज कहाय । चटअरहा हे जेन हा, कोंदा तो बन जाय ।। कोंदा तो बन जाय, होय जब गुनाह आघू । दुर्घटना ला देख, करे वो मुॅंह ला पाछू ।। आदमीयत ला मार, बनय ना कोनो साखी । घूमत हे बदमाश, देखा के हमला आंखी ।।

जनउला हे अबूझ

का करि का हम ना करी, जनउला हे अबूझ । बात बिसार तइहा के, देखाना हे सूझ ।। देखाना हे सूझ, कहे गा हमरे मुन्ना हा । हवे अंधविश्वास, सोच तुहरे जुन्ना हा ।। नवा जमाना देख, कहूं  तकलीफ हवय का । मनखे मनखे एक, भेद थोरको हवय का ।। -रमेश चौहान

मरगे एक किसान

कुण्‍डलियां दिल्ली के हड़ताल मा, मरगे एक किसान । गोठ बात अब हे चलत, काबर खोइस जान ।। काबर खोइस जान, दोष काला हम देइन । मउसम के वो मार, फसल नुकसानी लेइन ।। जेन सकेले भीड़, उड़ावत रहिन ग खिल्ली । वाह पुलिस सरकार, जेन बइठे हे दिल्ली ।। -रमेश चौहान

बेटा जियान नइ परय

बेटा जियान नइ परय, कमावत हवे बाप । दुनो हाथ ले तै उलच, दिखत रह टीप-टाप ।। दिखत रह टीप-टाप, दउड़ सरपट बाइक मा । साइकील मा बाप, मजा पाये लाइफ मा ।। जिये तोर बर बाप, निकाले दुख के लेटा । तोर ददा के काम, याद तै रखबे बेटा ।।

सरकारी काम

रोटी अपने सेकथे, कोनो ला तै देख । नेता अधिकारी लगय, चट्टा बट्टा एक । चट्टा बट्टा एक, करमचारी चपरासी । बैतरनी हे घूस, घाट दफ्तर चौरासी ।। भटकत मनखे जीव, भोचकत हवे कछोटी । कराय बर तो काम, खड़े हे बिन खाय रोटी ।। -रमेशकुमार सिंह चौहान

सीधा-सादा

सीधा-सादा जेन हे, जोजवा तो कहाय । दुनिया दारी छोड़ के, अपने रद्दा जाय । अपने रद्दा जाय, सहय अपमान  तभो ले । झूठ लबारी छोड़, पाय धोखा ग सबो ले ।। का होही भगवान, पाप होवत हे जादा । काबर तो दुख पाय, जगत मा सीधा-सादा ।।

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