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संदेश

कतका झन देखे हें-

देशप्रेम के पाठ हा

लागे लात के लत हवय, सुनय नही ओ बात । बात समझ मा आय ना, हवे जानवर जात । जात अपन सबले बड़े, जात पात के देश । देशप्रेम के पाठ हा, ओखर दिल न  समात ।।

छांट छांट बैरी ला मारव,

चारों कोती देखव संगी, कइसन कुहरा छाये । आतंक मचावत बैरी मन, बारूद बम्म जलाये ।। जे एन यू मा जुरे कइसे, पाकिस्तानी पीला । दिल्ली प्रेस क्लब म बैरी मन, करे कोन ओ लीला ।। हीरो करे देशद्रोही ला, बैरी मन मतियाये । हमरे छाती बइठे बैरी, हमला बड़ जिबराये ।। जेने थारी खाये बैरी, छेदा ओमा बनाये । कोन बने बैरी के संगी, कोन इहां रतियाये  ।। कइसन बोले के आजादी, कोन समझ हे पाये । गारी गल्ला हमला देवय, सुन लव घेच नवाये ।। सरकार खोरवा लुलवा हे, कनवा भैरा नेता । कोंदा बन मानवाधिकारी, लागत हे अभिनेता ।। वोट बैंक के लालच बोये, जाति धरम गिनवाये । नकटा कुटहा लोभी मन हा, देश बेच के खाये ।। अपन वोट ला तैं हर कइसे, बेचे हस हटवारा । अपने आंखी खोल निटोरव, जागव झारा झारा ।। सुरूज होय के कुहरा मेटव, जउन देश मा छाये । छांट छांट बैरी ला मारव, जे दुश्मन उपजाये ।।

हासत हे भगवान

//हासत हे भगवान // {दोहा गीत} अइसन मनखे देख के, हासत हे भगवान  । जेखर मन मा आन हे, अउ बाहिर मा आन ।। साजे बाना साधु के, राज महल बनवाय । चेला चाटी जोर के, पूजा अपन कराय ।। बनके खुद भगवान ओ, बइठे खुरसी तान । अइसन मनखे देख के, मुच मुच हासय भगवान । कहिथे भर नेता मनन, मैं जनता के दास । सब सुख ला खुद भोगथे, जनता रहय उदास ।। नेता बनके आदमी, मूॅंदे आॅखी कान । अइसन मनखे देख के,हासत हे भगवान  । विद्या मंदिर खोल के, धंधा अपन चलाय । ज्ञान नीति ला छोड़ के, बाकी सबो पढ़ाय ।। मनखे कोनो ना गढ़य, गढ़थे सब विज्ञान । अइसन मनखे देख के, हासत हे भगवान  । वृद्धा आश्रम खोल के, चंदा खूब कमाय । लइका सब सेवा करय, नियम कोन बनवाय ।। सास ससुर ला छोड़ के, बहू देखावय शान । अइसन मनखे देख के, मुच मुच हासय भगवान । गंगा के पूजा करय, तन मन बोर नहाय । गंदा पानी गांव के, गंगा मा बोहाय । गउमाता जे मन कहय, छेके हे गउठान । अइसन मनखे देख के, हासत हे भगवान  ।। अपन सबो अधिकार ला, धरे हवे जे हाथ । जाने बर कर्तव्य ला, देवय ना ओ साथ । बार बार हड़ताल कर, लागे खूब महान । अइसन मनखे देख के, हासत हे भगव

कहमुकरी

1. चुन्दी मोरे ओ सहलाथे । वोही मोरे मांघ बनाथे ।। रूप सजाथे जेने संगी । का सखि ? जोही ! ना सखि कंघी । 2. ओ हर अइसे करे कमाल । चमकत हवे मोर चोच लाल । लाज म जावत हे मोर जान । का सखि ? जोही ! नहीं रे पान । 3. कान मेर आके जेने बोले । परे नींद मा आॅखी खोले ।। गुस्सा आथे मोला अक्सर का सखि ? जोही ! नहि रे मच्छर ।

कहमुकरिया

कहमुकरिया (कहमुकरिया एक छंद होथे, जेमा 16, 16 मात्रा के चार चरण होथे, ये एक अइसन विधा आय जेमा एक सहेली अपन प्रियतम के वर्णन करथे अउ अपन सखी ले पूछथे, जब ओखर सखी हा, उत्तर मा साजन कहिथे तो ओ हा मुकर जाथे अउ आने उत्तर बता देथे, ये विधा मा रचनाकार अउ पाठक के बीच एक जनउला हो जथे) 1. रहिथे दिन रात संग मोरे, गोठ बात मा राखे बोरे । संग ओखरे करथव स्माइल । का सखि ? साजन ! ना सखि मोबाइल ।। 2. मोर अकेल्ला के संगी हे, ज्ञान जेखरे सतरंगी हे । जेखर आघू मैं नतमस्तक । का सखि ? साजन ! ना सखि पुस्तक ।

चमकत रेंगय टूरी

टाॅठ टाॅठ जिन्स पेंट पहिरे, अउ हल हल ले चूरी । बादर कस चुन्दी बगराये, चमकत रेंगय टूरी ।। पुन्नी के चंदा कस मुहरन, गली गली देखाये । अपन देह के रूआब गोरी, डहर डहर बगराये । काजर आंजे आंखी कारी, टूरा मन बर छूरी । बादर कस चुन्दी बगराये, चमकत रेंगय टूरी ।। तन के चुनरी पाछू टांगे, बेग हाथ लटकाये । गली गली हरहिंछा घूमे, कनिहा ला मटकाये । धरे जवानी बरखा आगे, छम छम नाचे मयूरी । बादर कस चुन्दी बगराये, चमकत रेंगय टूरी ।। टाॅठ टाॅठ जिन्स पेंट पहिरे, अउ हल हल ले चूरी । बादर कस चुन्दी बगराये, चमकत रेंगय टूरी ।।

अपन फरज निभाबो

रोला छ़द अपन देश के फर्ज. हमू मन आज निभाबो । कामबुता के संग. देश के गीत ल गाबो । देशभक्त ला देख. फूल कस बिछ जाबो । आघू बैरी देख. हमन बघवा बन जाबो ।। -रमेश चौहान

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