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संदेश

कतका झन देखे हें-

टूरा बहिया भूतहा, नई हवस कुछु काम के

नायक - गोदवाय हंव गोदना, गोरी तोरे नाम के । फूल बुटा बनवाय हंव, गोरी तोरे नाम के ।। नायिका- टूरा बहिया भूतहा, नई हवस कुछु काम के । खोर गिंजरा सेखिया, नई हवस कुछु काम के ।। नायक- तैं डारे हस मोहनी, मुखड़ा ला देखाय के । होगे तैं दिल जोगनी, दिल म मया जगाय के । तोर मया ला पाय बर, घूट पियें बदनाम  के । गोदवाय हंव गोदना, गोरी तोरे नाम के । नायिका- रूप रंग ला तैं अपन, दरपन धर के देख ले । आधा चुन्दी ठेकला, गाल दिखे हे पेच ले । कोने तोला भाय हे, फूल कहे गुलफाम के । टूरा बहिया भूतहा, नई हवस कुछु काम के । नायक- तोरे मुॅह ला देख के, चंदा लुकाय लाज मा । मुच मुच हॉसी तोर ओ, भगरे हे सब साज मा । तैं मोरे दिल मा बसे, जइसे राधा ष्याम के । गोदवाय हंव गोदना, गोरी तोरे नाम के । नायिका- काबर तैं घूमत हवस, पढ़ई लिखई छोड़ के । आथस काबर ये गली, अइसन नाता जोर के । धरे मया के भूत हे, तोला मोरे नाम के । टूरा बहिया भूतहा, नई हवस कुछु काम के ।

सोच

हवय भोर अउ सांझ मा, एक सुरूज के जात । बेरा ऊये मा दिन चढ़य, बेरा बुड़े म रात । सुघ्घर घिनहा सोच हा, बसे हवे मन तोर । घिनहा घिनहा सोच के, जाथस तैं हा मात ।।

मया के रंग

खरे मझनिया जेठ के, सावन अस तो भाय । ठुड़गा ठुड़गा रूख घला, पुरवाही बरसाय ।। तोर मया के रंग ले, जब रंगे मन मोर । फांदा के चारा घला, मोला गजब मिठाय ।

लगे देश मा रोग

जब तक जागय न मनखे, सबकुछ हे बेकार । सबो नियम कानून अउ, चुने तोर सरकार । मांगय भर अधिकार ला, करम ल अपन भुलाय । । लोक लाज ला छोड़ के, छोड़े हे संस्कार ।। धरे कटोरा हे खड़े, एक गोड़ मा लोग । फोकट मा सब बांटही, दुनिया के हर भोग । हमर देश सरकार हे, फोकट हा अधिकार । खास आम के सोच ले, लगे देश मा रोग ।।

परय पीठ मा लोर

मुॅह बांधे रहिके ददा, चीज रखे हे जोर । जोर जोर पइली पसर, कोठी राखे घोर ।। घोर घोर जब बेटवा, थुक मा लाडू बांध । मांगे बाटा बाप ले, परय पीठ मा लोर ।।

केत

बहरा भर्री बन जथे, परता रहे म खेत। खेत खार बर कोढि़या, बन जाथे गा केत ।। केत एक अउ दारू हे, जेन रखय गा पेर । पेर पेर हमला रखय, दारू कोढि़या नेत ।

बेचे रिश्ता रोज

घर घर मा दुकान हवे, बेचे रिश्ता रोज । रोज खरीदे कोन हा, कर लव एखर खोज ।। खोज कोन हा टोरथे, तोरे घर परिवार । लालच मा जे आय के, देथे पैरा बोज ।।

सही म ओही रोठ

लाठी जेखर हाथ मा, लहिथे ओखर गोठ । गोठ होय बदरा भले, पर मानय सब पोठ ।। पोठ गोठ लदकाय हे, बोल सके ना बोल । बोल पोठ जे बोलथे, सही म ओही रोठ ।।

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