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संदेश

कतका झन देखे हें-

का करबे आखर ला जान के

का करबे आखर ला जान के का करबे दुनिया पहिचान के । घर के पोथी धुर्रा खात हे, पढ़थस तैं अंग्रेजीस्तान के । मिलथे शिक्षा ले संस्कार हा, देखव हे का हिन्दूस्तान के । सपना देखे मिल जय नौकरी चिंता छोड़े निज पहिचान के । पइसा के डारा मा तैं चढ़े ले ना संदेशा खलिहान के जाती-पाती हा आरक्षण बर शादी बर देखे ना छान के । मुॅह मा आने अंतस आन हे कोने जानय करतब ज्ञान के ।

बेटी ला शिक्षा संस्कार दौ

गजल बहर-212, 212, 212 बेटी ला शिक्षा संस्कार दौ । जिनगी जीये के अधिकार दौ ।। बेटी होथे बोझा जे कहे, मन के ये सोचे ला टार दौ । दुनिया होथे जेखर गर्भ ले, अइसन नोनी ला उपहार दौ । मन भर के उड़ लय आकाश मा, ओखर डेना पांखी झार दौ । बेटी के बैरी कोने हवे, पहिचानय अइसन अंगार दौ । बैरी मानय मत ससुरार ला अतका जादा ओला प्यार दौ । टोरय मत फइका मरजाद के, अइसन बेटी ला आधार दौ । ताना बाना हर परिवार के, बाचय अइसन के संस्कार दौ ।

.ये नोनी के दाई सुन तो

.ये नोनी के दाई सुन तो, ये नोनी के दाई सुन तो, ये बाबू के ददा बता ना, ये बाबू के ददा बता ना, ये नोनी के दाई सुन तो, बात कहंत हंव तोला । जब ले आये तैं जिनगी मा, पावन होगे चोला ।। तोर मया ले मन बउराये, जग के छोड़ झमेला । अंग अंग मा हवस समाये, जस छाये नर बेला ।। ये बाबू के ददा बता ना, गोठ मया मा बोरे । सुख दुख के मोर संगवारी, ये जिनगी हे तोरे ।। तन मन हा अब मोरे होगे, तोर मया के दासी । दुख पीरा सब संगे सहिबो, मन के छोड़ उदासी ।। ये नोनी के दाई सुन तो, ये नोनी के दाई सुन तो, ये बाबू के ददा बता ना, ये बाबू के ददा बता ना, ये नोनी के दाई सुन तो, दिल के धड़कन बोले । काली जइसे आज घला तैं, मन मंदिर मा डोले । जस जस दिनन पहावत जावय, मया घला हे बाढ़े । तन के मोह छोड़ मन बैरी, मया देह धर ठाढ़े ।। ये बाबू के ददा बता ना, काबर जले जमाना । मोर देह के तैं परछाई, नो हय ये हा हाना ।। तैं मोरे हर सॉस समाये, अंतस करे बसेरा । तोर मया के चढ के डोला, पहुॅचे हंव ये डेरा ।। ये नोनी के दाई सुन तो, ये नोनी के दाई सुन तो, ये बाबू के ददा बता ना, ये बाबू के ददा बता ना,

खेलत कूदत नाचत गावत (मत्तगयंद सवैया)

खेलत कूदत नाचत गावत (मत्तगयंद सवैया) खेलत कूदत नाचत गावत हाथ धरे लइका जब आये । जा तरिया नरवा परिया अउ खार गलीन म खेल भुलाये । खेलत खेलत वो लइका मन गोकुल के मन मोहन लागे । गांव जिहां लइका सब खेलय गोकुल धाम कहावन लागे ।

रखबे बात ल काढ़

ले मनखेपन सीख । नोनी देवय भीख  कोनो मरय न भूख । होय न भले रसूख उघरा के तन ढाक । नंगरा ल झन झाक भूखाये  बर  भात । रोवइया बर बात हमरे देश सिखाय । नोनी सुघर निभाय देखत बबा अघाय । दूनो हाथ लमाय देवय बने अशीष । दिल के रहव रहीस नोनी करय सवाल । काबर अइसन हाल मांगे काबर भीख । सुनके लागय बीख बबा हा गुनमुनाय । चेथी ला खजुवाय का नोनी ल बतांव । कइसे के समझांव मोरो  तो  घरद्वार । रहिस एक परिवार बेटा बहू हमार । हवय बड़ होशियार पढ़े लिखे जस भेड़ । हे खजूर कस पेड़ ओ बन सकय न छांव । छोड़ रखे अब गांव न अपन तीर बलाय । न मन मोर बहलाय जांगर मोर सिराय । कइसे देह कमाय करथे बवाल पेट । तभे धरे हंव प्लेट नोनी तैं हर बाढ़ । रखबे बात ल काढ़ जाबे जब ससुरार । धरबे बात हमार

सुरूज के आभा

नकल के माहिर ह, नकल करय जब, झूठ लबारी ह घला, कहा जथे असली । सोन पानी के चलन, होथे अब्बड़ भरम, चिन्हावय न असल, लगथे ग नकली ।। हीरा ह लदकाये हे, रेती के ओ कुड़ुवा मा, येला जाने हवे वोही, जेन होथे जौहरी । करिया बादर तोपे, सच के सुरूज जब, सुरूज के आभा दिखे, बादर के पौतरी ।

दरत हवय छाती मा कोदो

देश के बाहरी दुश्मन ले बड़े घर के भीतर के बैरी मन हे

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