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संदेश

कतका झन देखे हें-

रीत-नीत के दोहावली

जीयत भर खाये हवन, अपन देश के नून । छूटे बर कर्जा अपन, दांव लगाबो खून ।। जीवन चक्का जाम हे, डार हॅसी के तेल । सुख-दुख हे दिन रात कस, हॅसी-खुशी ले झेल ।। चल ना गोई खाय बर, चुर गे हे ना भात । रांधे हंव मैं मुनगा बरी, जेला तैं हा खात ।। महर महर ममहात हे, चुरे राहेर दार । खाव पेट भर भात जी, घीव दार मा डार ।। परोसीन हा पूछथे, रांधे हस का साग । हमर गांव के ये चलन, रखे मया ला पाग ।। दाई ढाकय मुड़ अपन, देखत अपने जेठ । धरे हवय संस्कार ला, हे देहाती ठेठ ।। खेती-पाती बीजहा, लेवव संगी काढ़ । करिया बादर छाय हे, आगे हवय असाढ़ ।। बइठे पानी तीर मा, टेर करय भिंदोल । अगन-मगन बरसात मा, बोलय अंतस खोल ।। बइला नांगर फांद के, जोतय किसान खेत । टुकना मा धर बीजहा,  बावत करय सचेत ।। मुंधरहा ले जाग के, जावय खेत किसान । हॅसी-खुशी बावत करत, छिछत हवय गा धान ।। झम झम बिजली हा करय, करिया बादर घूप । कारी चुन्दी बगराय हे, धरे परी के रूप ।। आज काल के छोकरा, एती तेती ताक । अपन गांव परिवार के, काट खाय हे नाक ।। मोरे बेटा कोढ़िया, घूमत मारय शान । काम-बुता के गोठ ला, एको धरय न कान ।। जानय न

करिया बादर (घनाक्षरी छंद)

करिया करिया घटा, उमड़त घुमड़त बिलवा बनवारी के, रूप देखावत हे । सरर-सरर हवा, चारो कोती झूम झूम, मन मोहना के हॅसी, ला बगरावत  हे । चम चम चमकत, घेरी बेरी बिजली हा, हाॅसत ठाड़े कृश्णा के, मुॅह देखावत हे । घड़र-घड़र कर, कारी कारी बदरी हा, मोहना के मुख परे, बंषी सुनावत हे ।

सुमुखी सवैया

मया बिन ये जिनगी मछरी जइसे तड़पे दिन रात गियां । मया बिन ये तन हा लगथे जइसे ठुड़गा रूख ठाड़ गियां।। मया बरखा बन के बरसे तब ये मन नाचय मोर गियां । मया अब सावन के बरखा अउ राज बसंत बयार गियां

का करबे आखर ला जान के

का करबे आखर ला जान के का करबे दुनिया पहिचान के । घर के पोथी धुर्रा खात हे, पढ़थस तैं अंग्रेजीस्तान के । मिलथे शिक्षा ले संस्कार हा, देखव हे का हिन्दूस्तान के । सपना देखे मिल जय नौकरी चिंता छोड़े निज पहिचान के । पइसा के डारा मा तैं चढ़े ले ना संदेशा खलिहान के जाती-पाती हा आरक्षण बर शादी बर देखे ना छान के । मुॅह मा आने अंतस आन हे कोने जानय करतब ज्ञान के ।

बेटी ला शिक्षा संस्कार दौ

गजल बहर-212, 212, 212 बेटी ला शिक्षा संस्कार दौ । जिनगी जीये के अधिकार दौ ।। बेटी होथे बोझा जे कहे, मन के ये सोचे ला टार दौ । दुनिया होथे जेखर गर्भ ले, अइसन नोनी ला उपहार दौ । मन भर के उड़ लय आकाश मा, ओखर डेना पांखी झार दौ । बेटी के बैरी कोने हवे, पहिचानय अइसन अंगार दौ । बैरी मानय मत ससुरार ला अतका जादा ओला प्यार दौ । टोरय मत फइका मरजाद के, अइसन बेटी ला आधार दौ । ताना बाना हर परिवार के, बाचय अइसन के संस्कार दौ ।

.ये नोनी के दाई सुन तो

.ये नोनी के दाई सुन तो, ये नोनी के दाई सुन तो, ये बाबू के ददा बता ना, ये बाबू के ददा बता ना, ये नोनी के दाई सुन तो, बात कहंत हंव तोला । जब ले आये तैं जिनगी मा, पावन होगे चोला ।। तोर मया ले मन बउराये, जग के छोड़ झमेला । अंग अंग मा हवस समाये, जस छाये नर बेला ।। ये बाबू के ददा बता ना, गोठ मया मा बोरे । सुख दुख के मोर संगवारी, ये जिनगी हे तोरे ।। तन मन हा अब मोरे होगे, तोर मया के दासी । दुख पीरा सब संगे सहिबो, मन के छोड़ उदासी ।। ये नोनी के दाई सुन तो, ये नोनी के दाई सुन तो, ये बाबू के ददा बता ना, ये बाबू के ददा बता ना, ये नोनी के दाई सुन तो, दिल के धड़कन बोले । काली जइसे आज घला तैं, मन मंदिर मा डोले । जस जस दिनन पहावत जावय, मया घला हे बाढ़े । तन के मोह छोड़ मन बैरी, मया देह धर ठाढ़े ।। ये बाबू के ददा बता ना, काबर जले जमाना । मोर देह के तैं परछाई, नो हय ये हा हाना ।। तैं मोरे हर सॉस समाये, अंतस करे बसेरा । तोर मया के चढ के डोला, पहुॅचे हंव ये डेरा ।। ये नोनी के दाई सुन तो, ये नोनी के दाई सुन तो, ये बाबू के ददा बता ना, ये बाबू के ददा बता ना,

खेलत कूदत नाचत गावत (मत्तगयंद सवैया)

खेलत कूदत नाचत गावत (मत्तगयंद सवैया) खेलत कूदत नाचत गावत हाथ धरे लइका जब आये । जा तरिया नरवा परिया अउ खार गलीन म खेल भुलाये । खेलत खेलत वो लइका मन गोकुल के मन मोहन लागे । गांव जिहां लइका सब खेलय गोकुल धाम कहावन लागे ।

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