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संदेश

कतका झन देखे हें-

मनखे ओही बन जाथे

कुकुभ छंद जेन पेड़ के जर हे सुध्घर, ओही पेड़ ह लहराथे। जर मा पानी डारे ले तो, डारा पाना हरियाथे ।। नेह पोठ होथे जे घर के, ओही घर बहुत खटाथे । उथही होय म नदिया तरिया, मांघे फागुन म अटाथे ।। ढेला पथरा ला ठोके मा, राईं-झाईं हो जाथे । कच्चा माटी के लोंदा ले, करसी मरकी बन जाथे । जेन पेड़ ठांढ़ खड़े रहिथे, झोखा पाये गिर जाथे । लहर लहर हवा संग करके, नान्हे झांड़ी इतराथे ।। करू कस्सा कस बोली बतरस, जहर महूरा कस होथे । मीठ गोठ के बोली भाखा, सिरतुन अमरित रस बोथे। जिहां चार ठन भड़वा बरतन, धोये मांजे मा चिल्लाथे । संगे जुरमिल एक होय के, रंधहनी कुरिया मा जाथे ।। जेन खेत के मेढ़ साफ हे, ओही हा खेत कहाथे । मनखे ला जे मनखे मानय, मनखे ओही बन जाथे ।।

कब तक हम सब झेलत रहिबो

कब तक हम सब झेलत रहिबो, बिखहर सांप गला लपेट । कभू जैष अलकायदा कभू, कभू नवा इस्लामिक स्टेट ।। मार काट करना हे जेखर, धरम करम तो केवल एक । गोला बारूद बंदूक धरे, सबके रसता राखे छेक ।। मनखे मनखे जेती देखय, गोला बारूद देथे फोड़ । अपन जुनुन मा बइहा होके, उधम मचावत हें घनघोर ।। चिख पुकार अउ रोना धोना, मचे हवय गा हाहाकार । बिना मौत कतको मरत हंवय, देखव इन्खर अत्याचार ।। नाम धरम के बदनाम करत, खेले केवल खूनी खेल । मनखे होके राक्षस होगे, मनखेपन ला घुरवा मेल ।।

पढ़ई के नेह

होथे गा पढ़ई जिहां, काबर चूरे भात । पढ़ई लिखई छोड़ के, करे खाय के बात । बस्ता मा थारी हवय, लइका जाये स्कूल । गुरूजी के का काम हे, रंधवाय म मसगूल ।। मन हा तो काहीं रहय, बने रहय गा देह । बने रहय बस हाजरी, येही पढ़ई के नेह ।। अइसन शिक्षा नीति हे, काला हे परवाह । राजनीति के फेर मा, करत हें वाह-वाह ।। प्रायवेट वो स्कूल मा, कतका लूट-घसोट । गुरूजी हे पातर दुबर, कोन धरे हे नोट ।। करथें केवल चोचला, आन देश के देख । अपन देश के का हवय, पढ़व आन के लेख । हवय कमई जेखरे, पढ़ई म देत फूक । छोड़-छाड़ संस्कार ला, देखय केवल ‘लूक‘ । -रमेश चैहान

राग द्वेष ला छोड़ दे

राग द्वेष ला छोड़ दे, जेन नरक के राह । कोनो ला खुश देख के, मन मा मत भर आह ।। त्याग प्रेम के हे परख, करव प्रेम मा त्याग । स्वार्थ मोह के रंग ले, रंगव मत अनुराग ।। जनम जनम के पुण्य ले, पाये मनखे देह । करले ये जीवन सफल, मनखे ले कर नेह ।। अमर होय ना देह हा, अमर हवे बस जीव । करे करम जब देह हा, होय तभे संजीव ।। रोक छेक मन हा करय, पूरा करत मुराद । मजा मजा बस खोज के, करय बखत बरबाद ।।

नोनी बाबू एक हे

चंडिका छंद 13 मात्रा पदांत 212 नोनी बाबू एक हे । नारा हा बड़ नेक हे करके जग के काम ला । नोनी करथे नाम ला काम होय छोटे बड़े । हर काम म नोनी अड़े घर अउ बाहिर के बुता । नोनी हा देथे़ कुता येमा का परहेज हे । नोनी खुदे दहेज हे नोनी ला बड़ मान दौ । आघू ओला आन दौ नोनी नोनी के षोर मा । नवा चलन के जाोर मा बाबू मन पछुवाय हे । नोनी मन अघुवाय हे बाबू होगे छोट रे । जइसे सिक्का खोट रे नोनी बहुते हे पढ़े । बाबू बहुते हे कढ़े ताना बाना देश के । हर समाज परिवेश के तार तार झन होय गा । सोचव मन धोय गा

कहमुकरिया

1. मोरे कान जेन हा धरथे। आॅंखी उघार उज्जर करथे ।। दुनिया देखा करे करिश्मा । का सखि ? जोही । नहि रे चश्मा । 2. बइला भइसा जेखर संगी । खेत जोत जे करे मतंगी । काम करे ले थके न जांगर । का सखी ? किसान नही रे, नांगर ।

बरसात

चढ़ बादर के पीठ मा, बरसत हवय असाढ़ । धरती के सिंगार हा, अब तो गे हे बाढ़ ।। रद-रद-रद बरसत हवय, घर कुरिया सम्हार । बांध झिपारी टांग दे, मारत हवय झिपार ।। चिखला हे तोरे गोड़ मा, धोके आना गोड़ । चिला फरा घर मा बने, खाव पालथी मोड़ ।। सिटिर सिटिर सावन करय, झिमिर झिमिर बरसात । हरियर लुगरा ला पहिर, धरती गे हे मात ।।

मान सियानी गोठ

झेल घाम बरसात ला, चमड़ी होगे पोठ । नाती ले कहिथे बबा, मान सियानी गोठ ।। चमक दमक ला देख के, बाबू झन तैं मात । चमक दमक धोखा हवय, मानव मोरे बात ।। मान अपन संस्कार ला, मान अपन परिवार । झूठ लबारी छोड़ के, अपने अंतस झार ।। मनखे अउ भगवान के, हवय एक ठन रीत । सबला तैं हर मोह ले, देके अपन पिरीत ।। बाबू मोरे बात मा, देबे तैं हर ध्यान । सोच समझ के हे कहत, तोरे अपन सियान ।। कहि दे छाती तान के, हम तोरे ले पोठ । चाहे कतको होय रे, कठिनाई हा रोठ ।।

भौतिकवाद के फेर मनखे मन करय ढेर

भौतिकवाद के फेर । मनखे मन करय ढेर सुख सुविधा हे अपार । मनखे मन लाचार मालिक बने विज्ञान । मनखे लगे नादान सबो काम बर मशीन । मनखे मन लगय हीन हमर गौटिया किसान । ओ बैरी ये मितान जांगर के बुता छोड़ । बइठे पालथी मोड़ बइठे बइठे ग दिन रात । हम लमाय हवन लात अइसन हे चमत्कार । देखत मरगेन यार पढ़े लिखे हवे झार । नोनी बाबू हमार जोहत हे बुता काम । कइसे के मिलय दाम लूटे बांटा हमार । ये मशीन मन ह झार मशीन हा करय काम । मनखे मन भरय दाम सुख सुविधा बरबादी । जेखर हवन हम आदि करना हे तालमेल । छोड़ सुविधा के खेल बड़े काम बर मशीन । छोट-मोट हम करीन मशीन ल करबो दास । नई रहन हम उदास

काठी के नेवता

काठी के नेवता कोने जानय जिंनगी, जाही कतका दूर तक । बेरा उत्ते बुड़ जही, के ये जाही नूर तक ।। टुकना तोपत ले जिये, कोनो कोनो ठोकरी । मोला आये ना समझ, कइसे मरगे छोकरी ।। अभी अभी तो जेन हा, करत रहिस हे बात गा । हाथ करेजा मा धरे, सुते लमाये लात गा ।। रेंगत रेंगत छूट गे, डहर म ओखर प्राण गा । सजे धजे मटकत रहिस, मारत ओहर शान गा ।। देख देख ये बात ला, मैं हा सोचॅव बात गा । मोर मौत पक्का हवय, जिनगी के सौगात गा । मोला जब मरने हवय, मरहूॅ मैं हा शान ले । जइसे मैं जीयत हॅवव, तुहर मया के मान ले ।। भेजत हवॅव मैं हा अपन, अब काठी के नेवता । दिन बादर ला जान के, आहू बनके देवता ।। अपने काठी के खबर मैं हा आज पठोत हंव। जरहूं सब ला देख के , सपना अपन सजोत हंव ।।

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