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कतका झन देखे हें-

रिगबिग ले अँगना मा

हाँसत हे जीया, बारे दीया, रिगबिग ले अँगना मा । मिटय अंधियारी, हे उजियारी, रिगबिग ले अँगना मा ।। गढ़ के रंगोली, नोनी भोली, कइसन के हाँसत हे । ले हाथ फटाका, फोर चटाका, लइका हा नाचत हे ।।

डूब मया के दहरा

पैरी चुप हे साटी चुप हे, मुक्का हे करधनिया । चूरी चुप हे झुमका चुप हे, बोलय नही सजनिया ।। चांदी जइसे उज्जर काया, दग-दग ले दमकत हे । माथ बिनौरी ओठ गुलाबी, चम-चम ले चमकत हे ।। करिया-करिया बादर जइसे, चुंदी बड़ इतराये । सोलह अँग ले आरुग ओ हा, नदिया कस बलखाये । मुचुर-मुचुर ओखर हाँसी, जइसे नव बिहनिया । आंखी ले तो भाखा फूटय, जस सागर के लहरा । उबुक-चुबुक हे मोरे मनुवा, डूब मया के दहरा ।। लाख चॅंदैनी बादर होथे, तभो कुलुप अॅधियारे । चंदा एक सरग ले निकलय, जीव म जीव ल डारे ।। जोही बर के छांव जनाथे, जिनगी के मझनिया..

मोर कलम शंकर बन जाही

पी के तोर पीरा मोर कलम शंकर बन जाही तोर आँखी के आँसू दवाद मा भर के छलकत दरद ला नीप-जीप कर के सोखता कागज मा मनखे मन के अपन स्याही छलकाही तर-तर तर-तर पसीना तैं दिन भर बोहावस बिता भर पेट ला धरे कौरा भर नई खावस भूख के अंगरा मा अंगाकर बन ये कड़कड़ ले सेकाही डोकरा के हाथ के लाठी बेटी के मन के पाखी चोर उचक्का के आघू दे के गवाही साखी आँखी मूंदे खड़े कानून ला रद्दा देखाही

दोहा के रंग pdf

दोहा के रंग

‘‘ आँखी रहिके अंधरा‘ pdf

दिनांक 3 अप्रैल 2016 के मुगेली मा छत्तीसगढ़ राजभाषा आयोग के अध्यक्ष डॉ. विनय पाठक के शुभ हाथ ले मोर छत्तीसगढ़ी दूसर पुस्तक ‘‘ आँखी रहिके अंधरा‘ (कुण्डलियां छंद के कोठी ) के विमोचन होइस । पुस्तक पढ़व

ऊही ठउर ह घर कहाथे (नवगीत)

झरर-झरर चलत रहिथे जिहां मया के पुरवाही ऊही ठउर ह घर कहाथे ओदरे भले हे छबना फुटहा भिथिया के लाज ला ढाके हे परदा रहेटिया के लइका खेलत रहिथे मारत किलकारी ओही अँगना गजब सुहाथे अपन मुँह के कौरा ला लइका ला खवावय अपन कुरथा ला छोड़ ओखर बर जिन्स लावय पाई-पाई जोरे बर जांगर ला पेर-पेर ददा पसीना मा नहाथे अभी-अभी खेत ले कमा के आये हे बहू ताकत रहिस बेटवा अब चुहकत हे लहू लांघन-भूखन सहिथे लइका ला पीयाय बिन दाई हा खुदे कहां खाथे माटी, ईटा-पथरा के पोर-पोर मा मया घुरे हे माई पिल्ला के पसीना मा लत-फत ले मया हा चुरे हे खड़ा होथे जब अइसन घर-कुरिया के भथिया तभे सब मा मया पिरोथे

हिन्दू के बैरी हिन्दू

हिन्दू ला हिन्दू होय म, आवत हवय लाज । हिन्दू के बैरी हिन्दू, काबर हवय आज ।। सबो धरम दुनिया मा हे, कोनो करे न बैर । हिन्द ह हिन्दू के नो हय, कोन मनाय खैर ।। सबो धरम  हा इहां बढ़य, हमला न विद्वेश । हमर मान ला रउन्द मत, आय हमरो देश ।। हिन्दू कहब पाप लागय, अइसन हे समाज । दुनिया भर घूमत रहिके, नई बाचय लाज ।।

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