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कतका झन देखे हें-

बिना मौत के मौत हा

बिना मौत के मौत हा करथे समधी भेट गोल सुरूज के चक्कर काटत हवय ब्याकुल धरती चन्दा चक्कर काटत हावे कहां हवय गा झरती चक्कर खावय जीव हा येखर फसे चपेट मांजे धोय म धोवावय नहि भड़वा बरतन करिया नवा-नवा चेंदरा आज के दूसर दिन बर फरिया घानी के बइला हमन कहां भरे हे पेट कभू आतंकी बैरी मारय कभू रेलगाड़ी हा कभू फीस अस्पताल के अउ कभू डहे ताड़ी हा काखर ले हम का कही बंद पड़े हे नेट

चलन काल के जुन्ना होगे

कांव-कांव कउंवा करे, अँगना आही कोन छोड़ अलाली रतिहा भर के बेरा हा जागे हे लाल-लाल आगी के गोला उत्ती मा छागे हे चम्चम ले चमकत हवय जइसे पीयर सोन करिया नकली नंदा जाही उज्जर के अब आये मनखे-मनखे के तन-मन मा अइसे आसा छाये देखव आँखी खोल के चुप्पा बइठे कोन चलन काल के जुन्ना होगे खड़े नवा बर जोहे नवा गुलाबी नोट मिले हे सबके मन ला मोहे मन हा टूटे कोखरो बदले जब ये टोन

नेता के चरित्र,

नेता के चरित्र, होवय पवित्र, मनखे सबो कहत हे । जनता पुच्छला, हल्ला-गुल्ला, उन्खर रोज सहत हे ।। ओमन चिल्लाथे, देश  लजाथे, देख-देख झगरा ला । हमर नाम लाथे, अपन बताथे, देखव ओ लबरा ला ।।

जुन्ना नोट बंद होगे

सखी छंद (14 मात्रा के चार चरण दो पद पदांत 122) जुन्ना नोट बंद होगे । नवा नोट बर सब भोगे खड़े हवय बेंक दुवारी । जोहत सबो अपन बारी हाथे मा नोट कहां हे । हमरे मन खोट कहां हे बड़का नोट बंद होगे । छोटे नोट चंद होगे कोनो हा दै न उधारी । मैं बोलव नहीं लबारी नान-मून काम परे हे । साँय-साँय जेब करे हे जतका हवय नोट जाली । हो जाही गा सब खाली ओखर कुबड़ टूटही गा । करिया मरकी फूटही गा कहूँ-कहूँ नोट बरे हे । कहूँ-कहूँ नोट सरे हे कोनो फेकत  कचरा मा । कोनो गाड़े डबरा मा आतंकी के धन कौड़ी । कामा लेही अब लौड़ी रोवय सब चोर उचक्का । परे हवय अइसन धक्का मान देश के करबो गा । अपने इज्जत गढ़बो गा पीरा ला हम सहिबो गा । भारत माता कहिबो गा

रिगबिग ले अँगना मा

हाँसत हे जीया, बारे दीया, रिगबिग ले अँगना मा । मिटय अंधियारी, हे उजियारी, रिगबिग ले अँगना मा ।। गढ़ के रंगोली, नोनी भोली, कइसन के हाँसत हे । ले हाथ फटाका, फोर चटाका, लइका हा नाचत हे ।।

डूब मया के दहरा

पैरी चुप हे साटी चुप हे, मुक्का हे करधनिया । चूरी चुप हे झुमका चुप हे, बोलय नही सजनिया ।। चांदी जइसे उज्जर काया, दग-दग ले दमकत हे । माथ बिनौरी ओठ गुलाबी, चम-चम ले चमकत हे ।। करिया-करिया बादर जइसे, चुंदी बड़ इतराये । सोलह अँग ले आरुग ओ हा, नदिया कस बलखाये । मुचुर-मुचुर ओखर हाँसी, जइसे नव बिहनिया । आंखी ले तो भाखा फूटय, जस सागर के लहरा । उबुक-चुबुक हे मोरे मनुवा, डूब मया के दहरा ।। लाख चॅंदैनी बादर होथे, तभो कुलुप अॅधियारे । चंदा एक सरग ले निकलय, जीव म जीव ल डारे ।। जोही बर के छांव जनाथे, जिनगी के मझनिया..

मोर कलम शंकर बन जाही

पी के तोर पीरा मोर कलम शंकर बन जाही तोर आँखी के आँसू दवाद मा भर के छलकत दरद ला नीप-जीप कर के सोखता कागज मा मनखे मन के अपन स्याही छलकाही तर-तर तर-तर पसीना तैं दिन भर बोहावस बिता भर पेट ला धरे कौरा भर नई खावस भूख के अंगरा मा अंगाकर बन ये कड़कड़ ले सेकाही डोकरा के हाथ के लाठी बेटी के मन के पाखी चोर उचक्का के आघू दे के गवाही साखी आँखी मूंदे खड़े कानून ला रद्दा देखाही

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