सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

संदेश

कतका झन देखे हें-

मूरख हमला बनावत हें

बॉट-बॉट के फोकट म मूरख हमला बनावत हे पढ़े-लिखे नोनी-बाबू के, गाँव-गाँव म बाढ़ हे काम-बुता लइका मन खोजय येखर कहां जुगाड़ हे बेरोजगारी भत्ता बॉट-बॉट वाहवाही तो पावत हे गली-गली हर गाँव के बेजाकब्जा म छेकाय हे गली-गली के नाली हा लद्दी म बजबजाय हे छत्तीगढ़िया सबले बढ़िया गाना हमला सुनावत हे जात-पात म बाँट-बाँट के बनवात हे सामाजिक भवन गली-खोर उबड़-खाबड़ गाँव के पीरा काला कहन सपना देखा-देखा के वोट बैंक बनावत हे मास्टर पढ़ाई के छोड़ बाकी सबो बुता करत हे हमर लइका घात होषियार आघूच-आघूच बढ़त हे दिमाग देहे बर लइका मन ला थारी भर भात खवावत हे गाँव म डॉक्टर बिन मनखे बीमारी मा मरत हे कोरट के पेशी के जोहा म हमर केस सरत हे करमचारी के अतका कमी अपने स्टाफ बढ़ावत हे महिला कमाण्ड़ो घूम-घूम दरूवहा मन ला डरूवावय गाँव के बिगड़े शांति ल लाठी धर के मनावय जनता के पुलिस ला धर वो हा दारू बेचवावत हे

चारो कोती ले मरना हे

झोला छाप गांव के डॉक्टर, अउ रद्दा के भठ्ठी  । करना हावे बंद सबो ला, कोरट दे हे पट्टी ।। क्लिनिक सील होगे डॉक्टर के, लागे हावे तारा । सड़क तीर के भठ्ठी बाचे, न्याय तंत्र हे न्यारा ।। सरदी बुखार हमला हावय , डॉक्टर एक न गाँव म । लू गरमी के लगे थिरा ले, तैं भठ्ठी के छाँव म।। हमर गाँव के डॉक्टर लइका, शहर म जाके रहिथे । नान्हे-नान्हे लइका-बच्चा, दरूहा ददा ल सहिथे ।। गरीबहा भगवान भरोसा, सेठ मनन सरकारी । चारो कोती ले मरना हे, अइसन हे बीमारी ।।

अब आघू बढ़ही, छत्तीसगढ़ी

अब आघू बढ़ही, छत्तीसगढ़ी, अइसे तो लागत हे । बहुत करमचारी, अउ अधिकारी, येला तो बाखत हे ।। फेरे अपने मन, लाठी कस तन, खिचरी ला रांधत  हे । आके झासा मा, ये भाषा मा, आने ला सांधत हें ।।

मदिरा सवैया

रूप न रंग न नाम हवे कुछु, फेर बसे हर रंग म हे । रूप बने न कभू बिन ओखर, ओ सबके संग म हे ।। नाम अनेक भले कहिथे जग, ईश्वर फेर अनाम हवे । केवल मंदिर मस्जिद मा नहि, ओ हर तो हर धाम हवे ।।

छंदकार रमेश चौहान के दोहा

"अपन अभिव्यक्ति के सुघ्घर मंच"

छंदकार रमेश चौहान के नवगीत-‘‘मैं तो बेटी के बाप‘‘

छंदकार रमेश चौहान के कुण्डलियां-‘महतारी छत्तीसगढ़‘

जोगीरा सारा रारा

मउरे आमा ममहावय जब, नशा म झूमय साँझ । फाग गीत मा बाजा बाजे, ढोल नगाड़ा झाँझ ।। जोगीरा सारा रारा .. जोगीरा सारा रारा .. सपटे सपटे नोनी देखय, मचलत हावे बाबू । कइसे गाल गुलाल मलवं मैं, दिल हावे बेकाबू । जोगीरा सारा रारा .. जोगीरा सारा रारा .. दाई ल बबा हा कहत हवय, डारत-डारत रंग । जिनगी मोर पहावत जावय, तोर मया के संग ।। जोगीरा सारा रारा .. जोगीरा सारा रारा .. भइया-भौजी खेलत होरी, डारत रंग गुलाल । नंनद देखत सोचत हावय, कब होही जयमाल ।। जोगीरा सारा रारा .. जोगीरा सारा रारा .. होली हे होली हे होली, धरव मया के रंग । प्रेम जवानी सब मा छाये, सबके एके ढंग ।। जोगीरा सारा रारा .. जोगीरा सारा रारा ..

चल न घर ग

भृंग छंद नगण (111) 6 बार अंत म पताका (21) चल न घर ग, बिफर मत न, चढ़त हवय दारू । कहत कहत, थकत हवय, लगत हवय भारू ।। लहुट-पहुट, जतर-कतर, करत हवस आज । सुनत-सुनत, बकर-बकर, लगत हवय लाज ।।

भठ्ठी ल करव बंद

दारू म छठ्ठी छकत हवय गा, दारू म होय बिहाव । दारू म मरनी-हरनी होवय, मनखे करे हियाव ।। दरूहा-दरूहा के रेम लगे, सजे रहय दरबार । दारू चुनावी दंगल गढ़थे, अउ गढ़थे सरकार ।। गली-गली मा शोर परत हे, भठ्ठी ल करव बंद । पीयब छोड़ब कहय न कोनो, कहय रमेशानंद ।।

मोर दूसर ब्लॉग