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संदेश

कतका झन देखे हें-

सभ्य बने के चक्कर मा

लइका दाई के दूध पिये, दाई-दाई चिल्लाथे । आया डब्बा के दूध पिये, अपने दाई बिसराथे।। जेने दाई अपने लइका, गोरस ला नई पियाये। घेरी-घेरी लालत ओला, जेने ये मान गिराये ।। सभ्य बने के चक्कर मा जे, अपन करेजा बिसराये । बोलव दुनिया वाले कइसे, ओही हा सम्य कहाये ।। दाई के गोरस कस होथे, देश राज के भाखा । पर के भाखा ओदर जाही, जइसे के छबना पाखा ।। म्याऊ-म्याऊ बोल-बोल के,  बिलई बनय नही तोता। छेरी पठरू संग रही के, बघवा होय नही थोथा ।। अपने गोरस अपने भाखा, अपने लइका ला दे दौ । देखा-सेखी छोड़-छाड़ के, संस्कारी बीजा बो दौ ।

पियासे ठाड़े जोहय, रद्दा एको बूंद के

करिया-करिया घटा, बड़ इतरावत बड़ मेछरावत, करत हवे ठठ्ठा । लुहुर-तुहुर कर, ठगनी कस ठगत बइठारत हवे, हमरे तो भठ्ठा ।। नदिया-तरिया कुँआ, घर के बोर बोरिंग पियासे ठाड़े जोहय, रद्दा एको बूंद के । कोन डहर बरसे, कोन डहर सोर हे बैरी हमरे गांव ला, छोड़े हवे कूंद के ।।

खोज खोज के मारव

कहाँ ले पाथे आतंकी, बैरी नकसली मन पेट भर भात अउ, हथियार हाथ मा । येमन तो मोहरा ये, असली बैरी होही हे जेन ह पइसा देके, खड़े हवे साथ मा ।। कोन धनवान अउ, कोन विदवान हवे पोषत हे जेन बैरी, अपनेच देश के । खोज खोज के मारव, मुँहलुकना मन ला येही असली बैरी हे, हमरेच देश के ।।

देश-भक्ति

हमर धरम तो बस एक हे । देश-भक्ति हा बड़ नेक हे जनम-भूमि जन्नत ले बड़े । जेखर बर बलिदानी खड़े मरना ले जीना हे बड़े । जीये बर जीवन हे पड़े छोड़ गोठ तैं अधिकार के । अपन करम कर तैं झार के अपने हिस्सा के काम ला । अपने हिस्सा के दाम ला करना हे अपने हाथ ले । भरना हे अपने हाथ ले बइमानी भ्रष्टाचार के। झूठ-मूठ के व्यवहार के जात-पात के सब ढाल ला । तोड़व ये अरझे जाल ला देश बड़े हे के प्रांत हो । सोचव संगी थोकिन शांत हो देश गढ़े बर सब हाथ दौ । आघू रेंगे बर सब साथ दौ मनखे-मनखे एके मान के । सबला तैं अपने जान के मया-प्रेम मा तैं बांध ले । ओखर पीरा अपने खांध ले  देश मोर हे ये मान ले । जीवन येखर बर ठान ले अपने माने मा तो तोर हे । नही त तोरे मन मा चोर हे

अपने घर मा खोजत हावे, कोनो एक ठिकाना

अपने घर मा खोजत हावे, कोनो एक ठिकाना । छत्तीसगढ़ी भाखा रोवय, थोकिन संग थिराना ।। सगा मनन घरोधिया होगे, घर के मन परदेशी । पाके आमा निमुवा होगे, निमुवा गुरतुर देशी ।। अपने घर के नोनी-बाबू, आने भाषा बोलय । भूत-प्रेत के छांव लगे कस, पर के धुन मा डोलय ।। अपन ठेकवा मा लाज लगय, पर के भाये दोना । दूध कसेली धरय न कोनो, करिया लागय सोना ।। सरग म मनखे कबतक रहिही, कभू त आही नीचे । मनखे के जर धरती मा हे, लेही ओला खीचे ।।

आँखी म निंदिया आवत नई हे

तोर बिना रे जोही आँखी म निंदिया आवत नई हे ऊबुक-चुबुक मनुवा करे सुरता के दहरा मा आँखी-आँखी रतिहा पहागे तोर मया के पहरा मा चम्मा-चमेली सेज-सुपेती मोला एको भावत नई हे तोर बिना रे जोही आँखी म निंदिया आवत नई हे मोर ओठ के दमकत रंग ह लाली ले कारी होगे आँखी के छलकत आंसू काजर ले भारी होगे अइसे पीरा देस रे छलिया छाती के पीरा जावत नई हे तोर बिना रे जोही आँखी म निंदिया आवत नई हे आनी-बानी सपना के बादर चारो कोती छाये हे तोरे मोहनी काया के फोटू घेरी-बेरी बनाये हे छाती म आगी दहकत हे बैरी पिरोहिल आवत नई हे तोर बिना रे जोही आँखी म निंदिया आवत नई हे

जनउला-दोहा

चित्र गुगल से साभार जनउला 1. हाड़ा गोड़ा हे नही, अँगुरी बिन हे बाँह । पोटारय ओ देह ला, जानव संगी काँह ।। 2. कउवा कस करिया हवय, ढेरा आटे डोर । फुदक-फुदक के पीठ मा, खेलय कोरे कोर ।। 3. पैरा पिकरी रूप के, कई कई हे रंग । गरमी अउ बरसात मा, रहिथे मनखे संग ।। 4. चारा चरय न खाय कुछु, पीथे भर ओ चॅूस । करिया झाड़ी मा रहय, कोरी खइखा ठूॅस ।। 5. संग म रहिथे रात दिन, जिनगी बनके तोर । दिखय न आँखी कोखरो, तब ले ओखर सोर ।। 6. हाथ उठा के कान धर, लहक-लहक के बोल । मया खड़े  परदेश  मा, बोले अंतस खोल ।। 7. बिन मुँह के ओ बोलथे, दुनियाभर के गोठ । रोज बिहनिया सज सवँर, घर-घर आथे पोठ ।। 8. मैं लकड़ी  कस डांड अंव, खंड़-खंड़ मोरे पेट । रांधे साग चिचोर ले, देके मोला रेट ।। 9. खीर बना या चाय रे, मोर बिना बेकार । तोरे मुँह के स्वाद अंव, मोरे नाव बिचार ।। 10. मोरे पत्ता फूल फर, आय साग के काम । मै तो रटहा पेड़ हंव, का हे मोरे नाम ।। 11. फरय न फूलय जान ले, पत्ता भर ले काम । जेखर बहुते शान हे, का हे ओखर नाम ।। 12.  नॉंगर-बइला हे नहीं, तभो जोतथे खेत । घंटा भ

मोर ददा के छठ्ठी हे

मोर ददा के छठ्ठी हे, नेवता हे झारा-झारा कथा के साधु बनिया जइसे मोर बबा बिसरावत गे आजे-काले करहू कहि-कहि ददा के छठ्ठी भूलावत गे सपना बबा ह देखत रहिगे टूटगे जीनगी के तारा नवा जमाना के नवा चलन हे बाबू मोरे मानव मोर जीनगी ये सपना ल अपने तुमन जानव घेरी-घेरी सपना म आके बबा गोठ करय पिआरा बबा के सपना मैं ह एक दिन ददा ले जाके कहेंव ददा के मुह ल ताकत-ताकत उत्तर जोहत रहेंव सन खाये पटुवा म अभरे चेहरा म बजगे बारा बड़ सोच-बिचार के ददा मुच-मुच बड़ हाँसिस मुड़ डोलावत-डोलवत बबा के सपना म फासिस पुरखा के सपना पूरा करव बेटा मोर दुलारा छै दिन के छठ्ठी ह जब होथे महिनो बाद पचास बसर के लइका होके देखंव येखर स्वाद छठ्ठी के काय रखे हे जब जागव भिनसारा

चल चिरईया नवा बसेरा

//चौपाई छंद// बेटी मुड मा मउर पहीरे । सोच धरे हे  घात गहीरे अपने अंतस सोचत जावय । मुँह ले बोली एक न आवय चल चिरईया नवा बसेरा । अपन करम ला धरे पसेरा पर ला अब अपने हे करना । मया प्रीत ला ओली भरना कइसे सपना देखव आँखी । मइके मा बंधे हे पाँखी रीत जगत के एके हावय । मइके छोड़े ससुरे भावय मोर भाग हा ओखर हाथ म । जीना मरना जेखर साथ म दाना-पानी संगे खाबो । अपन खोंधरा हम सिरजाबो सास-ससुर हा देवी-देवा । मंदिर जइसे करबो सेवा दूनों हाथ म बजही ताली । नो हय ये हा सपना खाली धुरी सृष्टि के जेला कहिथे । जेखर बर सब जीथे मरथे मृत्यु लोक के हम चिरईया । सुख-दुख के केवल सहईया

मैं भौरा होगेंव ओ.... (करमा गीत)

//करमा गीत// नायक- मैं भौरा होगेंव ओ....., मैं भौरा होगेंव न, तोर मया ह फूलवा, मन भौरा होगेंव न तोर मया ह फूलवा, मन भौरा होगेंव न । नायिका- मैं चिरइया होगेंव गा...., मैं चिरइया होगेंव न, तोर मया बदरवा, मैं चिरइया होगेंव न तोर मया बदरवा, मैं चिरइया होगेंव न। नायक- फूल पतिया कस, गाल लाली-लाली... ओठ जइसे मधुरस ले, भरे कोनो थारी नायिका- तोर बहिया पलना, झूलना कस लागे.. तोर मया के पुरवाही, तन-मन मा छागे नायक- मैं भौरा होगेंव ओ....., मैं भौरा होगेंव न, तोर मया ह फूलवा, मन भौरा होगेंव न तोर मया ह फूलवा, मन भौरा होगेंव न । नायिका- मैं चिरइया होगेंव गा...., मैं चिरइया होगेंव न, तोर मया बदरवा, मैं चिरइया होगेंव न तोर मया बदरवा, मैं चिरइया होगेंव न। नायक- फूल कस ममहावय, मुच-मुच हाँसी .... अरझ के रहि जाये, जीयरा करे फासी नायिका- तोर मया के रंग, बदरा कस लागे देखे बर तोला रे, मन म पाखी जागे नायक- मैं भौरा होगेंव ओ....., मैं भौरा होगेंव न, तोर मया ह फूलवा, मन भौरा होगेंव न तोर मया ह फूलवा, मन भौरा होगेंव न । नायिका- मैं चिरइया होगेंव गा...., मैं चिरइया होगे

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