आगी लगेे पिटरोल मा, बरत हवय दिन राती ।
मँहगाई भभकत हवय, धधकत हे छाती ।।
कोरोना के मार मा, काम-बुता लेसागे ।
अउ पइसा बाचे-खुचे, अब तो हमर सिरागे ।।
मरत हवन हम अइसने, अउ काबर तैंं मारे ।
डार-डार पिटरोल गा, मँहगाई ला बारे ।।
सुनव व्यपारी, सरकार मन, हम कइसे के जीबो ।
मँइगाई के ये मार मा, का हम हवा ल पीबो ।।
जनता मरहा कोतरी, मँहगाई के आगी ।
लेसत हे नेता हमर, बांधत कनिहा पागी ।।
कोंदा भैरा अंधरा, राज्य केन्द्र के राजा ।
एक दूसर म डार के, हमर बजावत बाजा ।।
दुबर ल दू अषाढ़ कस, डहत हवय मँहगाई ।
हे भगवान गरीब के, तुँही ददा अउ दाई ।।
-रमेश चौहान
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