भाखा गुरतुर बोल तै, जेन सबो ल सुहाय । छत्तीसगढ़ी मन भरे, भाव बने फरिआय ।। भाव बने फरिआय, लगय हित-मीत समागे । बगरावव संसार, गीत तै सुघ्घर गाके । झन गावव अश्लील, बेच के तै तो पागा । अपन मान सम्मान, ददा दाई ये भाखा ।।
बाल कविता – नन्ही सी दुनिया बसाये (भाग-4)- सुधा वर्मा
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भोलेपल और मासूमियत से भरा होता है। वह बोलना सीखता है। वाक्य बनाना सीखता
है। कुछ कल्पनायें करता है । फिर उस कल्पना को साकार करना चाहता है। कभी कभी
यह कल्पन...
3 दिन पहले