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अप्रैल, 2016 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

कतका झन देखे हें-

घाम करे अतका (मदिरा सवैया)

घाम करे अतका अब तो धरती अॅंगरा कस लागय गा । हो ठुड़गा अब ठाढ़ खड़े रूखवा नॅंगरा कस लागय गा ।। बंजर  हे नदिया नरवा तरिया अउ बोर कुॅंआ नल हा।। हे तड़पे मछरी कस कूदत नाचत ये मनखे दल हा ।

कइसे भरही भेट

कइसे भरही भेट, हाथ मा हाथ धरे ले । काम बुता ला देख, मने मन तोर जरे ले । तर तर जब बोहाय, पसीना  देह म तोरे । चटनी मिरचा नून, सुहाही बासी बोरे । फुदक फुदक चिरई घला, दाना पानी खोजथे । जंगल के बघवा कहां, बइठे बइठे बोजथे ।।

छत्तीसगढ़ दाई के

छत्तीसगढ़ दाई के, परत हंन पांव ला । जेखर लुगरा छोरे, बांटे हे सुख छांव ला । पथरा कोइला हीरा, जेन भीतर मा भरे । सोंढुर अरपा पैरी, छाती मा अपने धरे ।। जिहां के रूख राई मा, बनकठ्ठी गढ़े हवे । जिहां के पुरवाही मा, मया घात घुरे हवे ।। अनपढ़ भले लागे, इहां के मनखे सबे । फेर दुलार के पोथी, ओखर दिल मा दबे ।। छत्तीसगढि़या बेटा, भुईंया के किसान हे। जांगर टोर राखे जे, ओही हमर शान हे ।।

भोगथे मोटर गाड़ी

मनखे केे अपराध, भोगथे मोटर गाड़ी । हर थाना मा देख, खड़े हे बने कबाड़ी ।। मोरो मन अभिलाष, सड़क मा घूमव फर फर । मनखे हे आजाद, कैद मा हा हँव काबर ।। कतका साधन देश के, काबर गा बरबाद हे । अंग भंग होके खड़े, खोय अपन मरजाद हे ।।

चिंता होथे देख के

चिंता होथे देख के, टूटत घर परिवार । पढ़े लिखे पति पत्नि मन, झेल सहे ना भार ।। जानय ना कर्तव्य ला, चाही बस अधिकार । बात बात मा हो अलग, मेट डरे परिवार ।। मांग भरण पोषण अलग, नोनीमन बउराय । टूरा मन हा दारू पी, अपने देह नसाय ।। राम लखन के देश मा, रावण के भरमार । गली गली मा हे भरे, सूर्पनखा हूंकार ।। कहे कहां मंदोदरी, रावण, बन तैं राम । बात नई माने कहूं, जाहूं मयके धाम ।। सूर्पनखा ला देख के, राम कहे हे बात । बसे हवय मुड़ गोड़ ले, सीता के जज्बात ।। रोठ रोठ किताब पढ़े, राम कथा ला छोड़ । अपन सुवारथ मा जिये, अपने नाता तोड़ ।।

भोमरा मा जर मरय

घाट सुन्ना बाट सुन्ना, खार सुन्ना गांव मा । झांझ झोला झेल झर झर, छांव मिलय न छांव मा ।। गाय गरूवा होय मछरी, रोय तड़पत पार मा । आदमी बेहाल होगे, घाम के ये मार मा ।। बूॅंद भर पानी नई हे, बोर नल सुख्खा परे । ओ कुॅआ अउ बावली हा, का पता कबके मरे । छोड़ मनखे गोठ तैं हर,जीव जोनी ले तरय । पेड़ रूख के जर घला हा, भोमरा मा जर मरय ।

अपन करम ला सब करव

चारे मछरी के मरे, तरिया हा बस्साय । बने बने भीतर हवय, बात कोन पतियाय ।। सच ठाढ़े अपने ठउर, घूमय झूठ हजार । सच हा सच होथे सदा, झूठ सकय ना मार ।। बुरा बुरा तैं सोचथस, बुरा बुरा ला देख । बने घला तो हे इहां, खोजे मा अनलेख ।। अपन करम ला सब करव, देखव मत मिनमेख । देखे मा गलती दिखय, तोरे मा अनलेख ।। जइसे होथे सोच हा, तइसे होथे काम । स्वाभिमान राखे रहव, होही तोरे नाम ।।

कहत हे पानी टपकत

टपकत पानी बूंद ला, पी ले तैं खोल । टपकत पानी बूंद हा, खोलत हावे पोल । खोलत हावे पोल, नदानी हमरे मन के । नरवा नदिया छेक, बसे हे मनखे तन के ।। पाटे कुॅवा तलाब, बोर खनवाये मटकत । सुख्खा होगे बोर, कहत हे पानी टपकत ।।

आंखी होथे तीन ठन

श्रद्धा अउ विश्वास हा, आथे अपने आप । कथरी ओढ़े घीव पी, राम नाम ला जाप ।। गलती ले जे सीखथे, अनुभव ओखर नाम । जीवन के पटपर डगर, आथे वोही काम ।। उल्टा तोरे सोच के, दिखय कहू गा बात । गुस्सा मन मा फूटथे, लाई कस दिन रात ।। एक होय ना मत कभू, जुरे चार विद्वान । अपन अपन के तर्क ले, बनथे खुदे महान ।। एक करे बर सोच ला, सुने ल परथे गोठ । सुन दूसर के गोठ ला, मनखे होथे पोठ ।। दवा क्रोध के एक हे, सहनशील मन होय । क्षमा दान ला मान दै, शांति जगत मा बोय ।। दिखय नही चेथी अपन, करलव लाख उपाय । गलती चेदी मा बसय, कइसे लेब नसाय । देखे बर मुॅह ला अपन, दर्पण चाही एक । अपने चारी जे सुनय, बन जाथे ओ नेक ।। कहिना कोनो बात ला, घात सहज मन मोय । काम करे बर कोखरो, जांगर नई तो होय ।। आंखी होथे तीन ठन, दू जग ला देखाय । तीसर आंखी मन हवय, अपने देह जनाय ।।

नाम ओखर हे ममता

ममता चंद्राकरजी ला पद्मश्री से सम्मानित होय बर गाड़ा-गाड़ बधाई - ममता दी के मान ले, माथा ऊंचा होय । छत्तीसगढ़ी बर इहां, जेने मही बिलोय ।। जेने मही बिलोय, घीव ला बांटे घर-घर । लता कोयली होय, गीत ला गाये झर-झर ।। छत्तीसगढ़ी आन, रखे हे अपने क्षमता । जेन हमर पहिचान, नाम ओखर हे ममता । -रमेश चौहान

जग ला मोहे, तोर जंवारा

जग ला मोहे, तोर जंवारा, लहर लहर लहराये । चारो कोती, आदि भवानी, तोरे ममता छाये । खातू माटी, कोने लावय, कोने लावय मरकी । कोने देवय, कपसा पोनी, कोने देवय चुरकी ।। कइसे लागे, जोत जवारा, जब नवराते आये । जग ला मोहे, तोर जंवारा... पाड़े लावय, खातू माटी, ओही लावय मरकी । कटिया देवय कपसा पोनी, कड़रा देवय चुरकी ।। जगमग करथे जोत जंवारा, जब नवराते आये । जग ला मोहे, तोर जंवारा... कोन जलावय जोत तुहारे, कोने हा जल डारे । कोने सेवा तोर बजावय, कोने मंतर भारे ।। कोन आरती तोर उतारे, कोने जस ला गाये । जग ला मोहे, तोर जंवारा... पंडित आये जोत जलाये, पण्ड़ा हा जल डारे । सेउक सेवा तोर बजावय, बइगा मंतर भारे ।। भगत आरती तोर उतारे, दुनिया जस ला गाये । जग ला मोहे, तोर जंवारा...

आज फुलवारी जागे

बिरही बिरवा होय, आज फुलवारी जागे । मंदिर मंदिर ठांव, हमर घर कुरिया लागे । रिगबिग रिगबिग जोत, जवारा झूमे लहराये । दाई के ये रूप, जगत ला घात रिझाये । नौ दिन नौ रात, करब दाई के सेवा । दाई मयारू घात, मांगबो भगती मेवा । मादर ढोल बजाय, ताल दे जस ला गाबो । झूम झूम के सांट, हाथ मा हमन लगाबो ।।

जागव जागव भारतवासी

जागव जागव भारतवासी, भारत माता करे पुकार । जाल बिछाये बैरी मन हा, मचा रखे हे हाहाकार ।। बोले के कइसन आजादी, मेटे भारत के अभिमान । जगह जगह मा गारी देके, मारत हावय ओमन शान ।। मोला जेने गारी देथे, ओला राखे माथ चढ़ाय मोर तिरंगा जेन धरे हे, ओला काबर मार भगाय मोरे गोदी मोरे लइका, सुसक सुसक के बात बताय बैरी मन हा कइसन चढगे, लइका मन ला घात सताय ।। अपन सोच ला बड़का माने, अउ बैरी ला अपन मितान कबतक तुमन सुते रहिहव रे, आंखी मूंदे गोड़े तान । कबतक तुमन सुनत रहिहव गा, अपन कान मा ठेठा बोज । मोरे लइका मारे जाथे, मोरे कोरा मा तो रोज । कइसन कायर गदहा होके, ढोवत हव दूसर के बोझ । महतारी के अचरा खातिर, बनव जलेबी कस तुम सोझ ।। सांगा बाणा लाठी ले लव, ले लव भाला गोला तोप । अपन देश के रक्षा खातिर, बांध कफन के तैं कंटोप । तोरे पुरखा इहां मरे हे, भारत माता के जय बोल छांट छांट बैरी ला मारव, लिख लाई कस तुमन टटोल ।

जय हो जय हो मइया तोरे

झांझ मंजिरा ढोलक बोले, बोले मांदर हा जयकार । जय हो जय हो मइया तोरे, संग भगत मन करे पुकार । गहद भरे तोरे फुलवरिया, जगमग जगमग चमकत जोत । जब लहराये जोत जंवारा, भगतन नाचे चारो कोत ।। सेऊक गावय भगतन झूमय, ले लेके बाणा अउ साट । बइगा सेवा तोर बजावय, भेट करय वो नीबू काट । हे आदि शक्ति आदि भवानी, कहि भगतन जयकार लगाय । अपन मनौती मन मा राखे, तोर डेहरी माथ नमाय । दुख पीरा ला मोरे हर दौ, हर दौ देश गांव के पीर । कइसन राक्षस फेरे होगे, हमरे मन हा होत अधीर ।।

लहर लहर लहराये मइया, तोरे जोत जंवारा

लहर लहर लहराये मइया, तोरे जोत जंवारा । तोरे जोत जंवारा, हो मइया, तोरे जोत जंवारा ।। अम्मावस के भींजे बिरही, मइया ला परघाये । मान मनौती एकम के सब, घी ले जोत जलाये । तोर रूप बिरवा मा आये, जग के होय सहारा । जग के होय सहारा, हो मइया, जग के होय सहारा लहर लहर लहराये मइया, तोरे जोत जंवारा । तोरे जोत जंवारा, हो मइया, तोरे जोत जंवारा ।। भगतन के श्रद्धा ले बिरवा, हाॅसत बाढ़त जावय देव लोक ले देवन आये, तोरे जस ला गावय ।। नव दिन नव राते ले मइया, होय तोर जयकारा । होय तोर जयकारा, हो मइया, होय तोर जयकारा लहर लहर लहराये मइया, तोरे जोत जंवारा । तोरे जोत जंवारा, हो मइया, तोरे जोत जंवारा ।।

लगत जेठ कस चइत हा

लगत जेठ कस चइत हा, कइसन घाम जनाय । अइसे कइसे होत हे, कोने आज बताय ।। बड़े बिहनिया देख तो, हे चर चर ले घाम । गरम गरम लागे हवा, कइसे करबो काम । हवय काम कोठार मा, बैरी घाम सताय ।। लगत जेठ कस चइत हा... तरिया नरवा अउ कुॅवा, बइठे हे बिन काम । बंद होत हे बोर हा, छोड़े अपने नाम ।। चिरई चिरगुन चीं चीं करत, पानी बर चिल्लाय ।। लगत जेठ कस चइत हा.... मनखे मनखे सोच लव, काबर पीरा झार । बेजा कब्जा मा फसे, तरिया नरवा पार । काट काट के पेड़ ला, अपने खेत बढ़ाय । लगत जेठ कस चइत हा... लालच मा मनखे फसे, रोके नदिया धार । अपने घर के गंदगी, तरिया नरवा डार ।। छेदे धरती के पेट ला, मनखे नई अघाय । लगत जेठ कस चइत हा...

मैं पगला तैं पगली होगे (युगल गीत)

नायक- मैं पगला तैं पगली होगे, बोले ना कुछु बैना । ठाढ़े ठाढ़े देखत रहिगे, गोठ करे जब नैना । नयिका- मैं पगली तैं पगला होगे, बोले ना कुछु  बैना । ठाढ़े ठाढ़े देखत रहिगे, गोठ करे जब नैना । नायक- तोरे हाॅसी फासी होगे, जीना मरना एके । तोला छोड़े रेगंव जब जब, हाॅसी रद्दा छेके । तोर बिना जोही अब मोला, आवय नही कुछु चैना । मैं पगला तैं पगली होगे....... नायिका- धक धक जियरा मोरे करथे, देखे बर गा तोला । तोर बिना अब का राखे हे, का मन अउ का चोला । सांस सांस मा बसे हवस तैं, मिलय कहां अब चैना । मैं पगली तैं पगला होगे.... नायक- मैं पाठा के मछरी जइसे, खोजत रहिथव पानी । जी मा जी तब आही जब तैं, होबे घर के रानी । डोला साजे तोला लाहू, सुन ले ओ फुलकैना । मैं पगला तैं पगली होगे....... नायिका- सुवा पिंजरा के जइसे मैं हर, खोलत रहिथंव पांखी । दाना पानी छोड़े बइठे, पानी ढारंव आंखी । आही मोरे राजकुवर हा, काटे बर ये रैना । मैं पगली तैं पगला होगे....

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