सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

संदेश

जनवरी, 2018 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

कतका झन देखे हें-

गाय अब केती जाही

टेक्टर चाही खेत बर, झट्टे होही काम । नांगर बइला छोड़ दे, कहत हवय विज्ञान । कहत हवय विज्ञान, धरम प्रगती के बाधक । देवय कोन जवाब, मौन हे धरमी साधक । पूछत हवे "रमेश", गाय अब केती जाही । बइला ला सब छोड़, कहय जब टेक्टर चाही ।। -रमेश चौहान

पांचठन दोहा

 कदर छोड़ परिवार के, अपने मा बउराय । अपन पेट अउ देह के, चिंता मा दुबराय ।। अपन गांव के गोठ अउ, अपन घर के भात । जिनगी के पानी हवा, जिनगी के जज्बात ।। काम नाम ला हे गढ़े, नाम गढ़े ना काम । काम बुता ले काम हे, परे रहन दे नाम ।। दारु बोकरा आज तो, ठाढ़ सरग के धाम । खीर पुरी ला छोड़ तैं, ओखर ले का काम ।। सीख सबो झन बाँटथे, धरय न कोनो कान । गोठ आन के छोट हे, अपने भर ला मान ।।

छंद चालीसा (छत्तीसगढ़ी छंद के कोठी)

"छंद चालीसा" (छत्तीसगढ़ी छंद के कोठी) । http://www.gurturgoth.com/chhand-chalisa/ ये लिंक म देख सकत हव ये किताब मा 40 प्रकार के छंद के नियम-धरम ला उदाहरण सहित समझाये के कोशिश करे हंव ।  येखर संगे-संग कई प्रकार के कविता कई ठन विषय मा पढ़े बर आप ला मिलही । येला पढ़के अपन प्रतिक्रिया स्वरूप आर्शीवाद खच्चित देहू 

मोर दूसर ब्लॉग