कदर छोड़ परिवार के, अपने मा बउराय ।
अपन पेट अउ देह के, चिंता मा दुबराय ।।
अपन गांव के गोठ अउ, अपन घर के भात ।
जिनगी के पानी हवा, जिनगी के जज्बात ।।
काम नाम ला हे गढ़े, नाम गढ़े ना काम ।
काम बुता ले काम हे, परे रहन दे नाम ।।
दारु बोकरा आज तो, ठाढ़ सरग के धाम ।
खीर पुरी ला छोड़ तैं, ओखर ले का काम ।।
सीख सबो झन बाँटथे, धरय न कोनो कान ।
गोठ आन के छोट हे, अपने भर ला मान ।।
अपन पेट अउ देह के, चिंता मा दुबराय ।।
अपन गांव के गोठ अउ, अपन घर के भात ।
जिनगी के पानी हवा, जिनगी के जज्बात ।।
काम नाम ला हे गढ़े, नाम गढ़े ना काम ।
काम बुता ले काम हे, परे रहन दे नाम ।।
दारु बोकरा आज तो, ठाढ़ सरग के धाम ।
खीर पुरी ला छोड़ तैं, ओखर ले का काम ।।
सीख सबो झन बाँटथे, धरय न कोनो कान ।
गोठ आन के छोट हे, अपने भर ला मान ।।
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