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कतका झन देखे हें-

छत्तीसगढ़ी श्लोक (अनुष्टुप छंद)

1. दुनिया ला बनाये तैं, कहाये भगवान गा । दुनिया ला चलाये तैं, मनखे बदनाम गा ।। 2. पत्ता डोलय ना एको, मरजी बिन तोर तो । अपन मन के धुर्रा, उड़ावय न थोरको ।। 3. तहीं हवस काया के, सब मा एक प्राण गा । तहीं हवस माया के, अकेल्ला सुजान गा ।। 4. सबकुछ ह तो तोरे, हमर एक तो तहीं । तैं पतंग के डोरी, हम पतंग के सहीं ।। 5. सब मा तोर माया हे, तोला जउन भात हे । कहां हमर ये बेरा, कुछु अवकात हे ।। 6. मनखे मनखे माने, मनखे मनखे सबो । मनखेपन के देदे, प्रभु तैं वरदान गो ।।

छत्तीसगढ़ दाई के

छत्तीसगढ़ दाई के, परत हंन पांव ला । जेखर लुगरा छोरे, बांटे हे सुख छांव ला । पथरा कोइला हीरा, जेन भीतर मा भरे । सोंढुर अरपा पैरी, छाती मा अपने धरे ।। जिहां के रूख राई मा, बनकठ्ठी गढ़े हवे । जिहां के पुरवाही मा, मया घात घुरे हवे ।। अनपढ़ भले लागे, इहां के मनखे सबे । फेर दुलार के पोथी, ओखर दिल मा दबे ।। छत्तीसगढि़या बेटा, भुईंया के किसान हे। जांगर टोर राखे जे, ओही हमर शान हे ।।

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