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कतका झन देखे हें-

किसनहा गाँव के

नांगर बइला फांद, अर्र-तता रगियाये जब-जब धनहा मा, किसनहा गाँव के । दुनिया के रचयिता, जग पालन करता दुनिया ला सिरजाये, ब्रम्हा बिष्णु नाम के ।। धरती दाई के कोरा, अन्न धरे बोरा-बोरा दूनो हाथ उलचय, किसान के कोठी मा । तर-तर बोहावय, जब-तक ओ पसीना तब-तक जनाही ग, स्वाद तोर रोटी मा ।।

शौचालय बैरी हा, दुखवा बोवत हे

डोहारत-डोहारत, घर भर बर पानी मोरे कनिहा-कुबर, दाई टूटत हवे । खावब-पीयब अउ, रांधब-गढ़ब संग बाहिर-बट्टा होय ले, प्राण छूटत हवे ।। डोकरा-डोकरी संग, लइका मन घलोक घर म नहाबो कहि कहि पदोवत हे। कइसे कहंव दाई, नाम सफाई के धरे शौचालय बैरी हा, दुखवा बोवत हे ।।

देश भले बोहावय, धारे-धार बाट मा

जात-पात भाषा-बोली, अउ मजहबी गोठ राजनीति के चारा ले, पोठ होगे देश मा । टोटा-टोटा बांधे पट्टा, जस कुकुर पोसवा देश भर बगरे हे, आनी-बानी बेश मा । कोनो अगड़ी-पिछड़ी, कोनो हिन्दू-मुस्लिम कोनो-कोनो दलित हे, ये बंदर बाट मा । सब छावत हवय, बस अपने कुरिया देश भले बोहावय, धारे-धार बाट मा ।।

ये सरकारी चाउर

ये सरकारी चाउर, सरकारी शौचालय त परे-परे बनगे,  कोड़िया-अलाल के । जेला देखव कंगला, अपने ल बतावय गोठ उन्खर लगय, हमला कमाल के ।। फोकट म पाय बर, ओ ठेकवा देखावय । कसेली के दूध घीव, हउला म डार के । मन भर छेके हवे, गांव के गली परिया सड़क म बसे हवय, महल उजार के ।।

पियासे ठाड़े जोहय, रद्दा एको बूंद के

करिया-करिया घटा, बड़ इतरावत बड़ मेछरावत, करत हवे ठठ्ठा । लुहुर-तुहुर कर, ठगनी कस ठगत बइठारत हवे, हमरे तो भठ्ठा ।। नदिया-तरिया कुँआ, घर के बोर बोरिंग पियासे ठाड़े जोहय, रद्दा एको बूंद के । कोन डहर बरसे, कोन डहर सोर हे बैरी हमरे गांव ला, छोड़े हवे कूंद के ।।

खोज खोज के मारव

कहाँ ले पाथे आतंकी, बैरी नकसली मन पेट भर भात अउ, हथियार हाथ मा । येमन तो मोहरा ये, असली बैरी होही हे जेन ह पइसा देके, खड़े हवे साथ मा ।। कोन धनवान अउ, कोन विदवान हवे पोषत हे जेन बैरी, अपनेच देश के । खोज खोज के मारव, मुँहलुकना मन ला येही असली बैरी हे, हमरेच देश के ।।

करिया बादर (घनाक्षरी छंद)

करिया करिया घटा, उमड़त घुमड़त बिलवा बनवारी के, रूप देखावत हे । सरर-सरर हवा, चारो कोती झूम झूम, मन मोहना के हॅसी, ला बगरावत  हे । चम चम चमकत, घेरी बेरी बिजली हा, हाॅसत ठाड़े कृश्णा के, मुॅह देखावत हे । घड़र-घड़र कर, कारी कारी बदरी हा, मोहना के मुख परे, बंषी सुनावत हे ।

सुरूज के आभा

नकल के माहिर ह, नकल करय जब, झूठ लबारी ह घला, कहा जथे असली । सोन पानी के चलन, होथे अब्बड़ भरम, चिन्हावय न असल, लगथे ग नकली ।। हीरा ह लदकाये हे, रेती के ओ कुड़ुवा मा, येला जाने हवे वोही, जेन होथे जौहरी । करिया बादर तोपे, सच के सुरूज जब, सुरूज के आभा दिखे, बादर के पौतरी ।

नाग पंचमी

दूध ले गिलास भरे, हाथ मा पट्टी ला धरे, नाग फोटु उकेर के, स्कूल जात लइका । फूल-पान ला चढ़ाये, नाग देवता मनाये , नरियर ला फोर के, रखे हवें सइता ।। बारी-कोला खेत-खार, माटी दिया दूध डार, भिमोरा ला खोज के, पूजे हवे किसाने । प्राणी प्राणी हर जीव, जेमा बिराजे हे षिव, नाग हमर देवता, धरती के मिताने ।। जांघ निगोट लपेट, धोती कुरता ला फेक, बड़े पहलवान हा, देख तइयार हे । गांव मा खोजत हवे, चारो कोती घूम-घूम लडे बर तो गांव मा, कोन होशियार हे । जांघ ला वो ठोक-ठोक, कहत हे घेरी-बेरी, अतका जड़ गांव मा, लगथे सियार हे । आजा रे तैं जवान, आजा गा तैं किसान, मलयुद्ध तो खेलबो, पंचमी तिहार हे ।।

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