नांगर बइला फांद, अर्र-तता रगियाये
जब-जब धनहा मा, किसनहा गाँव के ।
दुनिया के रचयिता, जग पालन करता
दुनिया ला सिरजाये, ब्रम्हा बिष्णु नाम के ।।
धरती दाई के कोरा, अन्न धरे बोरा-बोरा
दूनो हाथ उलचय, किसान के कोठी मा ।
तर-तर बोहावय, जब-तक ओ पसीना
तब-तक जनाही ग, स्वाद तोर रोटी मा ।।
जब-जब धनहा मा, किसनहा गाँव के ।
दुनिया के रचयिता, जग पालन करता
दुनिया ला सिरजाये, ब्रम्हा बिष्णु नाम के ।।
धरती दाई के कोरा, अन्न धरे बोरा-बोरा
दूनो हाथ उलचय, किसान के कोठी मा ।
तर-तर बोहावय, जब-तक ओ पसीना
तब-तक जनाही ग, स्वाद तोर रोटी मा ।।
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें