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कतका झन देखे हें-

मुखिया

होथे जस दाई ददा, होवय मुखिया नेक । गांव  राज्य  या देश के, मुखिया मुखिया एक । मुखिया के हर काम के, एक लक्ष्य तो होय । रहय मातहत हा बने, कोनो झन तो रोय ।। काम बुता मुखिया करय, जइसे भइसा ढोय । अपने घर परिवार बर, सुख के बीजा बोय ।। घुरवा कस मुखिया बनय, सहय ओ सबो झेल । फेके डारे चीज के, करय कदर अउ मेल ।। सोच समझ मुखिया बनव, गांव होय के देश । मुखिया मुॅंह कस होत हे, जेन मेटथे क्लेश ।।

अइसन शिक्षा नीति हे

अइसन शिक्षा नीति हे, नम्बर के सब खेल । नम्बर जादा लाय के, झेले लइका झेल ।। पढ़े लिखे ना ज्ञान बर, नम्बर के हे होड़ । अइसन सोच समाज के, बचपन लेवय तोड़ ।। पढ़े लिखे के बोझ मा, लदकाये हे जवान । पढ़े लिखे के नाम मा, कतका देवय जान ।। अव्वल आय के फेर मा, झेल सकय ना झेल । पढ़त पढ़त तो कई झन, करय मउत ले मेल ।। पढईया लइका सुनव, करहू मत तुम भूल । नम्बर  के ये फेर ला, देहूं झन तुम तूल ।।

पढई ले का फायदा

पढई ले का फायदा, अउ का हे नुकसान । तउल तराजू देख ले, अनपढ अउ विद्वान ।। कुवर गोफरी कस कुवर, पढ़ के मनखे होय । आखर आखर बूॅद ले, अपन केरवछ धोय । विद्या ले आथे विनय, विनय बनाथे योग्य । योग्य बने धन आय हे, धन ले धरमी भोग्य । सही गलत के फैसला, करथे सोच विचार । दुनिया-दारी जान के, करथे सद् व्यवहार ।। शिक्षा के ये लक्ष्य हा, लगथे आज गवाय । पाये बर तो नौकरी, लोगन सबो पढ़ाय ।। जेला देखव तेन हा, कहय एक ठन बात । पढ़े लिखे मा काम के, मिलथे भल सौगात ।। काबर कोनो ना कहय, पाये बर संस्कार । नीत-रीत ला जान लय, लइका पढ़े हमार । पढ़े लिखे मनखे इहां, बिसराये संस्कार । अंग्रेजी के चोचला, चारो कोती झार । हिरदय मा धर हाथ तै, एक बार तो सोच । चलन घूस के देश मा, कइसे आये नोच । कोन अंगूठा छाप हा, काला दे हे घूस । पढ़े-लिखे बाबू मनन, पढ-लिख ले हे चूस । अपने दाई अउ ददा, करे निकाला कोन । पढ़े-लिखे ले पूछ ले, कइसे साधे मोन ।। खेत खार ला बेच के, जेला ददा पढ़ाय । साहब होके बेटवा, ओही ला भूलाय ।। पढ़े लिखे के चोचला, अपन रौब देखाय । पार्टी-सार्टी ओ करय, दारू-मंद बोहाय ।। पढ़े ल

दरुहा

का निरधन धनवान का, दारू पिये सब ठाठ । का कुरिया अउ का महल, का रद्दा अउ बाट ।। का सुख अउ दुख के बखत, का दिन अउ का रात । जेती पावव देख लव, बइठे चार जमात ।। दारु पिये ले आदमी, दरुहा नई कहाय । दारु पिये इंसान ला, तब दरुहा बन जाय ।। दरुहा होथे कुकुर अस, लहके जीभ लमाय । दारु पाय बर जेन हा, पूछी अपन हलाय ।। दारु पिये ओ कोलिहा, बघवा कस नरिआय । बघवा ले बधिया बनय, लद्दी मा धस जाय ।।

बिना काम के आदमी

लात परे जब पीठ मा, पीरा कमे जनाय । लात पेट मा जब परय, पीरा सहे न जाय ।। काम बुता ले हे बने, पूरा घर परिवार । काम छुटे मा हे लगे, अपने तन हा भार ।। लगे काम ला कोखरो, काबर तैं छोड़ाय । मारे बर तैं मार ले, अब कोने जीआय ।। काम बुता के नाम हा, जीवन इहां कहाय । बिना काम के आदमी, जीयत मा मर जाय ।।

गुटका के अइसन चलन

नवा जमाना के चलन, गुटखा पाउच देख। गली सड़क मा थूक ले, चित्र गढ़े अनलेख ।। चगल चगल के रात दिन, छेरी कस पगुराय । गुटका पाउच खाय के, गली खोर रंगाय ।। पथरा रंगे थूक ले,घसरे मा ना जाय । रंग करेजा मा भरे, अइसन गुटका भाय ।। पान सुपारी हे कहां, गुटका सबे लमाय । फेषन के ये फेर मा, सरहा सरहा खाय ।। का का के धुररा हवय, काला कोन बताय । गुटका के अइसन चलन, सबो बात बिसराय ।।

सहिष्णुता

सहिष्णुता काला कहिथे, पूछय लइका आज । कोन जनी गा बेटवा, आवत मोला लाज ।। प्रश्न उठे ना आज तक, का होगे अब बात । हीरो पिक्चर के कहे, समझ नई तो आत ।। टी.वी. भूकय रात दिन, काखर पइसा पाय । सहिष्णुता आय का, कोनो नई बताय ।। मोला लगथे ये हवे, जइसे हरही गाय । हरियर हरियर खेत मा, मनमाफिक तो जाय । मोर सोच मा बेटवा, सहिष्णुता हे सोच । सोच सोच ले सोच के, माथा कलगी खोच ।। सागर मा नदिया भरय, घर कुरिया मा गांव । सब ला तो एके लगय, बर पीपर के छांव ।। धरती पानी अउ हवा, सहिष्णुता के मूर्ति । जीव जीव हर जीव के, करथे इच्छा पूर्ति ।।

मइल हाथ के होत हे

मइल हाथ के होत हे, तोर चुने सरकार । अपन आप ला देख ले, फेर बोल ललकार ।। देश राज हा तोर हे, खुद ला मालिक जान । लोकतंत्र के राज मा, चलय तोर फरमान ।। अपन आप ला भूल के, गे नेता दरबार । लालच मा मतदान के, भोग सजा सौ बार ।। प्रांतवाद के बात हा, छाये काबर देश । काम आय हे वोट बर, मिटे कहां हे क्लेश ।। तोर रीति संस्कार हा, हे गा तोरे हाथ । अपने ला बिसराय के, ठोकत हस अब माथ ।।

राउत दोहा बर दोहा-

तुलसी चौरा अंगना, पीपर तरिया पार । लहर लहर खेती करय, अइसन गांव हमार ।। गोबर खातू डार ले, खेती होही पोठ । लइका बच्चा मन घला, करही तोरे गोठ ।। गउचर परिया छोड़ दे, खड़े रहन दे पेड़ । चारा चरही ससन भर, गाय पठरू अउ भेड़ ।। गली खोर अउ अंगना, राखव लीप बहार । रहिही चंगा देह हा, होय नही बीमार  ।। मोटर गाड़ी के धुॅंवा, करय हाल बेहाल । रूख राई मन हे कहां, जंगल हे बदहाल ।। -रमेश चौहान

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