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कतका झन देखे हें-

खेलत कूदत नाचत गावत (मत्तगयंद सवैया)

खेलत कूदत नाचत गावत (मत्तगयंद सवैया) खेलत कूदत नाचत गावत हाथ धरे लइका जब आये । जा तरिया नरवा परिया अउ खार गलीन म खेल भुलाये । खेलत खेलत वो लइका मन गोकुल के मन मोहन लागे । गांव जिहां लइका सब खेलय गोकुल धाम कहावन लागे ।

मइके अचरा अब छोड़ दुलौरिन

मइके अचरा अब छोड़ दुलौरिन, तैं मन भीतर राख मया । अब हे अपने दुनिया गढना, भर ले मन मा सुख आस नवा ।। मइके घर हा पहुना अब तो ससुरार नवा घर द्धार हवे । बिटिया भल मानव ओ ससुरार म जीवन के रस धार हवे ।।

घाम करे अतका (मदिरा सवैया)

घाम करे अतका अब तो धरती अॅंगरा कस लागय गा । हो ठुड़गा अब ठाढ़ खड़े रूखवा नॅंगरा कस लागय गा ।। बंजर  हे नदिया नरवा तरिया अउ बोर कुॅंआ नल हा।। हे तड़पे मछरी कस कूदत नाचत ये मनखे दल हा ।

नाचत गात मनावत होरी (सवैया)

नाचत गात मनावत होरी (सवैया) ढोलक मादर झांझ बजावत हाथ लमावत गावत फागे। मोहन ओ छलिया नट नागर रास रचावव रंग जमाके । आवव आवव भक्त बुलावत। गावत फाग उडावत रोरी । फागुन मा रसिया रस लावत नाचत गात मनावत होरी ।। हे सकलावत आवत जावय छांट निमार बनावत टोली । भांग धरे छलकावत जावत बांटत बांटत ओ हमजोली। रंगत संगत के दिखथे जब रंग लगाय करे मुॅह-जोरी छोट बड़े सब भेद भुलावत नाचत गात मनावत होरी ।। हाथ धरे पिचका लइका मन रंग भरे अउ मारन लागे । आवय जावय जेन गलीन म ओहर तो मुॅह तोपत भागे । मारत हे पिचका मुॅह ऊपर ओ लइका मन हा बरजोरी  । आज बुरा मत मानव जी कहि नाचत गात मनावत होरी ।। हाथ गुलाल धरे दउडावत नंनद देखत भागत भौजी । भागत देखत साजन आवय रंग मले मुॅह मा मन मौजी । रंगय साजन रंग म हाॅसत लागय ओ जस चांद चकोरी रंगय रंग दुनों इतरावत नाचत गात मनावत होरी ।।

गांव बसे हमरे दिल मा

गांव बसे हमरे दिल मा हम तो लइका अन एखर संगी । गांवन मा सबके ममता मिलथे कुछु बात म होय न तंगी ।। जोतत नागर खेत किसान धरे मुठिया कहिथे त तता जी । खार अऊ परिया बरदी म चरे गरूवा दिखथे बढि़या जी ।।

कोन रचे जग सृष्टिन सुंदर

हे मइया महिमा तुहरे जग चार जुगे त्रिय काल समाये । वो तइहा अउ आज घला सब भक्त मिले तुहरे जस गाये । पार न पावय देवन सृष्टि म नेति कहे सब माथ नवाये । ये मनखे कइसे तुइरे जस फेर भला कुछु बात बताये ।। कोन रचे जग सृष्टिन सुंदर, लालन पालन कोन करे हे । कोन इहां उपजावय जीवन, काल धुरी भुज कोन धरे हे ।। जेखर ले उपजे विधि शंकर, जेन रमापति ला उपजाये । आदि अनंत न जेखर जानन, शक्ति उही हर काय कहाये ।। शैल सुता ह रचे जग सुंदर, लालन पालन गौरि करे हे । आदि उमा उपजावय जीवन, काल धुरी भुज कालि धरे हे ।। आदिच शक्ति ह तो विधि शंकर राम रमापति ला उपजाये । आदि अनंत पता नइ जेखर, शक्ति उही हर मातु कहाये ।। -रमेश चौहान मिश्रापारा, नवागढ जिला-बेमेतरा

झूमत नाचत फागुन आगे (मत्तगयंद सवैया)

हे गमके महुवा जब पीयर, पाय नशा जड़ चेतन जागे । हो बहिया भवरा जब मातय, रंग बिरंग कली हर छागे ।। हे मउरे अमुवा सरसो जब, ये धरती हर दुल्हन लागे । कोयल हे कुहके जब बागन झूमत नाचत फागुन आगे ।। छाय बने परसा कलगी बन, झूम बसंत ले पगड़ी मुड बांधे । घाम न जाड़ जनावत हे जब मंद सुगंध बयार ह आगे।। पाय नवा जिनगी बुढ़वा रूख डोलत वो लइका कस लागे । झूमय रे तितली जब फूलन झूमत नाचत फागुन आगे ।। गावय फाग धरे टिमकी सब लेत बलावत मोहन राधे । हाथ गुलाल धरे मुह पोतय, मान बुरा मत बोलय साधे ।। हाथ धरे पिचका लइका हर रंग भरे अउ डारन लागे । रंग गुलाल उड़े जब बादर झूमत नाचत फागुन आगे ।।

हे जिबरावत गोरी

काजर आंजत मुंह सजावत देख लजावत दर्पण छोरी । केस सजावत फूल लगावत खुद ल देखत भावत छोरी । आवत जावत रेंगत कूदत नाचत गावत देखत गोरी । काबर मुंह बनावत मुंह लुकावत हे जिबरावत गोरी । ......................रमेश.....................

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